अजमेर (अजमेर मुस्कान)। तपागच्छ जैन संघ के तत्वावधान में चल रही प्रवचन माला के अंतर्गत धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य तत्वदर्शन सुरीश्वर ने कहा कि अनादि काल से जीव चार गतियों में भ्रमण करता आ रहा है। इन चारों गतियों में मनुष्य गति ही सर्व श्रेष्ठ गति है। हमारा सौभाग्य है जो हमें मनुष्य गति प्राप्त हुई।इसके बावजूद भी हमारे जीवन में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र धर्म की आराधना नहीं है। जीवन में तप धर्म नहीं है। दया एवं दान का भाव नहीं है। उन्होंने कहा सांसारिक उलझनों में उलझे व्यक्ति को परभव की कोई चिंता फिक्र ही नहीं है। उन्होंने कहा देवलोक के देव सभी तीर्थंकर परमात्माओं की देशना तो सुन सकते है किंतु धर्म, दान, जीवों के प्रति दया एवं साधु साध्वी को गोचरी पानी नहीं वहरा सकते इसके लिए उनको पुण्य कर्म के बंध करने का अवसर भी प्राप्त नहीं हो सकता। किंतु मनुष्य भव में तो व्यक्ति चाहे जितना पुन्यकर्म कर सकता है। उन्होंने कहा छोटे छोटे व्रत नियमों से भी कर्मों की निर्जरा हो सकती है। व्यक्ति नवकार वाली गिन सकता है। सामयिक कर सकता है। प्रतिक्रमण कर सकता है। जीवों के प्रति दया का भाव रख सकता है। उन्होंने कहा नवकारसी का प्रतख्यान करने से 100 वर्ष, पोरसी करने से 1000 वर्ष एवं डेढ़ पोरसी करने से 10000 वर्ष तक की नरक के आयुष्य की पीड़ा भुगतने से छुटकारा मिल सकता है। उन्होंने कहा मनुष्य जन्म मिला है। इसकी सार्थकता को जाने। स्वयं की आत्मा के लिए कुछ ऐसा करे जिससे हमारा परभव सुधरे। उन्होंने कहा देश विदेश की यात्रा करनी हो तो व्यक्ति उसकी चिंता तो कर लेता है। किंतु परलोक की कोई चिंता ही नहीं है। व्यक्ति को परिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, मान, सम्मान, अपमान, पद एवं प्रतिष्ठा की चिंताओं से विरक्ति लेते हुए यह चिंतन करना चाहिए कि मुझे आयुष्य पूर्ण कर कहां जाना है। मेरे जीवन में कल पहले आएगा या दूसरा भव पहले आएगा। इसका कोई ठिकाना नहीं है। जीवन की प्रत्येक सांस मृत्यु को निकट बुलाने का निमंत्रण है। जीवन का कोई भरोसा नहीं है कि कल का उदित भास्कर हमारे जीवन में सवेरा लाएगा या नहीं। उन्होंने कहा जो अंतिम में करना है। उसे आज करने की सोच बनाओं। उन्होंने कहा मनुष्य गति जंक्शन के समान है। जहां से हम देव गति, त्रियंच गति, नरक गति एवं पुनः मनुष्य गति को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन केवल मनुष्य गति ऐसी गति ही ऐसी गति है बार जन्म एवं मरण के दुख से छुटकारा दिला सकती है।मनुष्य गति से हम मोक्ष तक को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने जीवन में राग एवं द्वेष न करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि राग करने वाला त्रियंच गति में, द्वेष करने वाला व्यक्ति नरक गति में, वैराग्य को सहेज कर रखने वाला देव गति में तथा प्राणी मात्र के प्रति करुणा एवं वात्सल्य का भाव मोक्ष तक दिला सकता है। उन्होंने कहा वैराग्य से वात्सल्य आता है राग से द्वेष आता है। उन्होंने जीवन में शीघ्र कषाय ना लाने एवं भीतर में विद्यमान अहंकार को दहन करने की प्रेरणा देते हुए इसे नरक का कारण बतलाया।
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