अजमेर (अजमेर मुस्कान)। शीत ऋतु में पाले से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किसानों को विभिन्न उपाय करने चाहिए।
कृषि अधिकारी पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि संयुक्त निदेशक कृषि विभाग शंकर लाल मीणा द्वारा किसानों को सलाह जारी की गई है। शीतलहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान होता है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलस कर झड़ जाते हैं। अध-पके फल सिकुड़ जाते हैं। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं व बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं। पाला पड़ने की स्थिति में दोपहर के पश्चात हवा का बहना रुक जाता है। मौसम का साफ़ होने के साथ ही आकाश में बादल नहीं होते है। हवा में नमी अथवा आद्र्रता की कमी हो जाती है। वातावरण का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम होने लगता है।
शीत लहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय
पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों एवं नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पोलीथिन या भूसे से ढ़क देंवे। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटाएं। शाम को हल्की सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव कम होता है। खेतों की मेड एवं बीच-बीच में घास-फूस जला कर धुंआ करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि जब पाला पड़ने की सम्भावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। जिन दिनों पाला पड़ने की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिड़काव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें या थायो यूरिया 500 पीपीएम (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
उन्होंने बताया कि सरसों, गेंहू चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती हैं।
उन्होंने बताया कि दीर्घकालीन उपाय के रुप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिए जाए तो पाले और ठण्डी हवा के झौंकों से फसल का बचाव हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए निकटतम कृषि कार्यालय में सम्पर्क करें। किसान कॉल सेन्टर के निःशुल्क दूरभाष नम्बर 18001801551 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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