विज्ञान पूर्वजों को गलत ठहराता है, धर्म पूर्वजों का अनुसरण करता है : रज़ा
गौहर रज़ा को अजयमेरु प्रेस क्लब की मानद सदस्यता भी प्रदान की गई
अजमेर (अजमेर मुस्कान)। धर्म व आध्यात्म की अपनी तर्कशीलता है जो मान्यताओं पर आधारित है, जबकि विज्ञान के तर्क प्रयोगों पर आधारित हैं। धर्म व विज्ञान दोनों के तर्क अलग भले ही हों, मगर दोनों के सिद्धांत तर्क आधारित हैं। तर्कों में भेद हो सकता है, क्योंकि मेटाफिजिक्स यानी धर्म व आध्यात्म के सवाल "क्यों" से शुरू होते हैं जैसे, मैं क्यों हूँ? या दिन-रात क्यों होते हैं? इन क्यों वाले सवालों से अंधविश्वास का जन्म होता है क्योंकि जब "क्यों" से शुरू होने वाले सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब हमारे ज्ञान की सीमा खत्म हो जाती है, ऐसे में अंतिम जवाब होता है कि "भगवान की मर्ज़ी"। मगर इसके उलट यदि सवाल "क्यों" की जगह "कैसे" से शुरू करें, तो जवाब नहीं मिलने की सूरत में कम से कम "जैसी भगवान की मर्ज़ी" तो अंतिम जवाब नहीं होगा। "कैसे" से शुरू किए गए सवाल का जवाब पाने के लिए यदि हमारे ज्ञान की सीमा समाप्त भी हो जाएगी तो सही जवाब पाने के लिए आगे पढ़ने की जरूरत होगी, ज्ञानवर्द्धन तथा रिसर्च की ज़रूरत पड़ेगी, ताकि एक तर्कशील जवाब प्राप्त कर सकें। यह बातें जानेमाने वैज्ञानिक, कवि, लेखक, फिल्मकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता गौहर रज़ा ने रविवार को अजयमेरु प्रेस क्लब के खचाखच भरे सभागार में शहर के बुद्धिजीवियों, क्लब सदस्यों व अन्य गणमान्य व्यक्तियों से कही। वह अजयमेरु प्रेस क्लब की ओर से आयोजित "अंधविश्वास, तर्कशीलता और विज्ञान" विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार रख रहे थे।
रज़ा ने कहा कि अफ्रीकन पौराणिक कथाओं व मान्यताओं में जीवन के छह मुख्य तत्व हैं, वहीं ग्रीक मान्यताओं में चार तत्वों से जीवन बना है, जबकि हिन्दू मान्यताओं में पंचतत्व की प्रधानता है। भिन्न मान्यताओं के तर्क भिन्न होने से ही सवाल खड़े होते हैं। जब से इंसान ने सवाल पूछने शुरू किए, तभी धर्म व आध्यात्म को लेकर मान्यताएं स्थापित होने लगीं। जैसे-जैसे समाज जटिल होता गया, तो सवाल जटिल होते गए। ऐसे में आस्थाएं व मान्यताएं दो भागों में बंट गईं, आध्यात्म मानने वाले अंधविश्वास की तरफ बढ़ गए और तर्क ढूंढने वाले नई खोज में लग गए। उन्होंने अपनी अपब्रिंगिंग की युवा उम्र को याद करते हुए कहा कि वह एक ऐसा दौर था जब दुनिया में एक तरफ से राजनीतिज्ञ चले आ रहे थे, दूसरी तरफ से साहित्यकार यूँ बढ़ रहे थे मानो ग़ालिब और कैफ़ आ रहे हों । वहीं समानांतर रूप से वैज्ञानिक विचारधारा चली आ रही थी। ऐसे में तीन अलग विचारधारा के तबके एक टकराव के हालात पैदा करते थे। ऐसे में विज्ञान व धर्म का रिश्ता ढूंढने की कोशिश करने वाले को लोग नास्तिक करार दे देते थे। मगर समय के साथ जब विज्ञान व रिसर्च पर लोगों का भरोसा बढ़ा तो एक वक्त वह भी आया, जब कुम्भ मेले में धार्मिक मान्यताओं के साथ जुड़े लोगों से मुलाकत की, तो आस्था में डूबे लोग भी विज्ञान के तर्कों के पक्षधर मिले। एक बड़ी संख्या उस आध्यात्मिक मेले में ऐसे लोगों की मिली जो विज्ञान पर विश्वास करती थी।
धार्मिक मान्यता है कि धरती कछुए की पीठ पर या नंदी के सींग पर टिकी है, यह एक मिथ है। जबकि धरती हवा में आखिर टिकी कैसे है? यही सवाल विज्ञान है। अर्थात मिथ और विज्ञान में बारीक फर्क है, या सवाल के पूछे जाने के तरीक़े का फर्क है।
उन्होंने कहा कि न्यूटन के लिए ब्रह्मांड स्टेटिक यानी ठहरा हुआ था, जबकि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त उन्होंने ही दिया। वह फिर भी ब्रह्मांड के खींचने का प्रमाण नहीं दे पाए। जबकि आइंस्टाइन अपनी "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" में ब्रह्मांड को सिकुड़ता हुआ बताते थे। मगर जब साबित हुआ कि ब्रह्मांड न ठहरा हुआ है, ना सिकुड़ रहा है, वह तो फैल रहा है; तो आइंस्टाइन माफी मांगने को भी मजबूर हुए।
बस यही फर्क है आध्यात्म और विज्ञान में। साइंस में जो सबसे ज्यादा लेटेस्ट (ताजा, नवीन) है वही ऑथेंटिक है, जबकि धर्म में जो जितना ज्यादा पुराना है उसे ऑथेंटिक मान लिया जाता है। साइंस आगे बढ़ती है जब हम पूर्वजों को गलत साबित करते हैं। क्योंकि पूर्वजों ने जो कहा सिर्फ उसे ही रटते रहने से साइंस आगे नहीं बढ़ेगी, उसके लिए खोज व प्रमाण निरंतर जरूरी प्रक्रिया है; जबकि धर्म किसी एक किताब पर आधारित प्रतिपादित सिद्धान्त के एकल तर्क तक सीमित है। उन्होंने कहा कि धर्मांधता के नाम पर जात बाहर करने की प्रवृत्ति को समाज से खत्म करना हमारी जिम्मेदारी है, हम तभी तर्कशीलता से नए सवाल पूछ सकेंगे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रख्यात पत्रकार, इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक "जनसत्ता" के पूर्व सम्पादक, हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति , महर्षि दयानंद सरस्वती और राज्य कौशल विकास विश्वविद्यालय के कुलपति रहे ओम थानवी ने कहा कि हमें परिपाटियां तोड़नी होंगी। हम पितृ ग्रंथों के अनुसरण व अनुकरण में तर्कहीन होकर बस यही मान बैठते हैं कि आदिकालीन ग्रन्थ जो कह गए, सिर्फ वही सही है। कट्टरपंथी विचारधारा हमें आगे बढ़ने से रोकती है। उन्होंने कहा कि गौहर रज़ा की तार्किक तक़रीर हमें वैज्ञानिक समाज बनाने में बहुत उपयोगी साबित होगी। हम अंधविश्वास, अशिक्षा, रूढ़िवाद के भरोसे यदि अब भी खुद को विश्व-गुरु मान रहे हैं, तो हम तरक्की को रोक रहे हैं। प्रतीकात्मक रूप से नए मकान पर काली हांडी और नई बसों और ट्रकों पर जूता लटकाना, अथवा गण्डे-ताबीज व धागे पहनना आस्था हो सकती है; मगर इन आस्थाओं के भरोसे बलाओं के टल जाने या कोई अनिष्ट नहीं होने का भरोसा सिर्फ अंधविश्वास है। इन अंधविश्वासों के भरोसे जीवन-मृत्यु को पाने की उम्मीद या विकास की उम्मीद वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अतार्किक है। हम बाबा लोगों की मूर्खताओं और पाखंडियों के अनुयायी बन कर यदि विश्व-गुरु होने का दम्भ भरते रहेंगे और विज्ञान को नज़रंदाज़ करेंगे तो भला नहीं होगा।
इस मौके पर गौहर रज़ा ने अपनी नज़्म "सच ज़िन्दा है" सुनाई। उनकी पंक्तियां "जब सब यह कहें खामोश रहो, जब सब यह कहें कुछ भी ना कहो, तब आवाज़ उठाना लाज़िम है" ने खूब दाद बटोरी।
सवाल-जवाब के सत्र में एक जवाब में रज़ा ने ऋग्वेद के हवाले से कहा कि "बिग बैंग" से पूर्व जब ना जीवन था ना मृत्यु थी ना जीवन-मृत्यु का भाव था; जब ना अंधेरा था ना उजाला और ना अंधेरे-उजाले का भाव था, तब वक़्त, समय या काल का कोई कांसेप्ट नहीं था। जीव उत्पत्ति के बाद वक़्त या समय को समझा गया। और वक़्त की एक शब्द की परिभाषा है "बदलाव"। बदलाव है तो हम कह सकते हैं कि सृष्टि में वक़्त चल रहा है।
इससे पूर्व अजयमेरु प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेंद्र गुंजल ने संगोष्ठी की प्रासंगिकता बताते हुए कहा कि करवाचौथ के व्रत के दिन इस विषय पर संगोष्ठी रखना ही आयोजन को प्रासंगिक बना देता है। व्रत या उपवास वैज्ञानिक आधार पर शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं, यह वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है। मगर व्रत रखने से पति की आयु में वृद्धि होगी यह सिर्फ मान्यता है । इसका कोई तार्किक प्रमाण नहीं है। और ऐसे में दूरदराज सहित स्थानीय स्तर पर बुद्धिजीवी वर्ग का इस संगोष्ठी को सुनने आना इसकी प्रासंगिकता और बढ़ा देता है।
कार्यक्रम में अजयमेरु प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेन्द्र गुंजल और महासचिव सत्यनारायण जाला ने संगोष्ठी के मुख्य वक्ता गौहर रज़ा को क्लब की मानद सदस्यता भी प्रदान की ।
साहित्यकार अनंत भटनागर ने गौहर रज़ा और और ओम थानवी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। दैनिक भास्कर के डिप्टी न्यूज़ एडिटर प्रताप सिंह सनकत ने गौहर रज़ा तथा राजस्थान पत्रिका के सम्पादकीय प्रभारी अरविंद मोहन शर्मा ने ओम थानवी का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत में क्लब अध्यक्ष राजेंद्र गुंजल ने रज़ा का तथा दैनिक नवज्योति के पूर्व मुख्य उपसंपादक और अजयमेरु प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र चौहान ने थानवी का माल्यार्पण कर स्वागत किया। क्लब के महिला समूह "हमसफ़र" की तरफ से मधु अग्रवाल और आभा शुक्ला ने भी दोनों अतिथियों को गुलदस्ते भेंट कर अभिनंदन किया। अंत में क्लब सचिव गुरजेंद्र सिंह विर्दी ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन दैनिक भास्कर के डिप्टी न्यूज एडिटर प्रताप सिंह सनकत ने किया।
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