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देश को सही अर्थों में आगे ले जाएगी नई शिक्षा नीति : देवनानी

देश को सही अर्थों में आगे ले जाएगी नई शिक्षा नीति : देवनानी

म.द.स. विश्वविद्यालय में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में शिक्षण संस्थानों की भूमिका’’ विषय पर कार्यशाला

अजमेर (अजमेर मुस्कान)। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि नई शिक्षा नीति राष्ट्र को सही अर्थों में विकास के पथ पर अग्रसर करेगी। भारत ने वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र का संकल्प लिया है, नई शिक्षा नीति इस उद्देश्य पर खरी उतरेगी। नई शिक्षा नीति सच्चे अर्थों में भारतीय जनमानस, नवीन विद्या पद्धतियों एवं विपुल भारतीय ज्ञान पद्धति का प्रतिनिधित्व करती है।

विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने शुक्रवार को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में शिक्षण संस्थानों की भूमिका’’ विषय पर आयोजित कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि 2014 में केन्द्र की सशक्त सरकार का गठन हुआ। ऎसी सरकार जो विचारधारा की दृष्टि से प्राचीन भारतीय जीवन मूल्यों, आदर्शों, परम्पराओं एवं प्रथाओं के साथ-साथ भारत को ‘‘भारत माता‘‘ मानने वाली सरकार है। विश्वगुरू के रूप में पूजने वाली सरकार है। इस सरकार ने आज़ादी के बाद शिक्षा में जो सुधार होने थे। उनकी कमी को देखा, और उन कमियों की पूर्ति के लिए इसरो के पूर्व अध्यक्ष श्री के. कस्तूरी रंगन के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया। हजारों शिक्षकों, अभिभावकों एवं विद्यार्थियों के साथ मिलकर, चर्चा कर तथ्यों को एकत्रित करते हुए और विकसित होते भारतीय समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप एक शिक्षा नीति का निर्माण किया गया जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में अस्तित्व में आई। इसका प्रमुख उद्देश्य अधुनातन शैक्षिक संसाधनों और नवोन्मेष के माध्यम से समानता और समावेशन को बढ़ावा देना।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के उपरान्त प्रारम्भ से ही शिक्षा व्यवस्थाओं में बदलाव अपेक्षित था। अंग्रेजाें के शासन के लगभग 200 वर्षो के दौरान शिक्षा व्यवस्था में जो विचारधारा विकसित हो चुकी थी, उसमें बदलाव अपेक्षित, प्रासंगिक, सामयिक एवं आवश्यक था। नवीन शिक्षा नीति को लागू करने से पूर्व शैक्षिक स्तर पर, आमजन के स्तर पर, शिक्षण संस्थाओं में सुझाव आमंत्रित किए गए थे एवं उन सभी सुझावों को ध्यान में रखकर यह लागू की गई। शिक्षा की पद्धति में तीन महत्वपूर्ण घटक शिक्षक, शिक्षार्थी व शिक्षाविद् होते हैं और यह तीनों जिस स्थान पर जहां मिलते हैं वह स्थान शिक्षा के मन्दिर हमारे ‘‘शिक्षण संस्थान‘‘ होते है। शिक्षण संस्थाओं की भूमिका इसलिए अधिक बढ़ जाती है क्योंकि नीति के क्रियान्वयन के स्तर पर एक शैक्षिक संस्थान हमेशा प्रयोग, प्रशिक्षण, निर्देशन और अधिगमन का मुख्य केन्द्र होता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थान बौद्धिक कौशल एवं व्यक्तित्व निर्माण के केन्द्र होते हैं। शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में शिक्षण संस्थान भारत केन्दि्रत, विद्यार्थी केन्दि्रत, तर्कसंगत तथा वैज्ञानिक अवधारणाओं से युक्त ज्ञान का प्रचार प्रसार करेंगे। उसी से भारतीय ज्ञान परम्परा का पुनस्र्थापन होगा एवं राष्ट्रीय पुनरूत्थान के लिए भारत को ‘‘द ट्रेज़री ऑफ नॉलेज‘‘ के रूप में स्थापित किया जाएगा।

नई शिक्षा नीति की मंशा श्रेष्ठ पाठ्यक्रम, श्रेष्ठ शिक्षक और श्रेष्ठ शैक्षिक वातावरण प्रदान करना है इसके लिए शिक्षण संस्थान सुगम, सरल और ग्राह्य पाठ्यक्रम का संचालन करें जो कि जीवनोपयोगी हो। आज खेल और खेल मैदान, विज्ञान और कम्प्यूटर की प्रयोगशालाऎं, वाद-विवाद और विचार विमर्श की प्रक्रियाऎं तथा एन.सी.सी., एन.एस.एस. (राष्ट्रीय सेवा योजना), स्काउटिंग एवं अन्य सह शैक्षिक गतिविधियाँ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रम में बहुत महत्वपूर्ण है। इन समस्त गतिविधियों का संधारण और संचालन शिक्षण संस्थानों का महत्वपूर्ण दायित्व है।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक उत्कृष्ट दस्तावेज है जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को बौद्धिक एवं कार्य व्यवहार की दृष्टि से भारतीय बनाना है। शिक्षा क्षेत्र में देश में इससे पूर्व जिन नीतियों को लागू किया गया वह सामाजिक एवं ऎतिहासिक स्तर पर भारतीय संस्कृति का अपमान करने वाली थी जिनको वर्तमान शिक्षा नीति से बाहर कर दिया गया है। मल्टी डिसीप्लिन शिक्षण व्यवस्था को अपना कर विभिन्न विषयों के बीच आने वाले स्पीड ब्रेकर को भी तोड़ दिया है। आज विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार पढ़ने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है जिसने छात्रों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के अवसर खेल दिए हैं। आज कक्षा 9 से स्नातकोत्तर शिक्षा में अप्रेंटिसशिप एवं व्यवहारिक ज्ञान को 50 प्रतिशत तक शामिल किया गया है। नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन का 70 प्रतिशत से अधिक कार्य विश्वविद्यालय स्तर पर होना है। विश्वविद्यालय में औपचारिक टास्क फोर्स का गठन किया जाकर छात्रों एवं शिक्षकों के बीच समन्वय बनाते हुए पेपर प्रेजेंटेशन, क्विज, आलेख जैसा प्राथमिक कार्य हो सकता है।

डीन छात्र कल्याण प्रो. सुभाष चन्द्र ने इस अवसर पर उपस्थित जनसमुदाय को प्लास्टिक मुक्त विश्वविद्यालय की शपथ दिलाई। इस अवसर पर लब्ध प्रतिष्ठित शिक्षाविद् उपस्थित रहे जिनमें डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, पूर्व कुलपति प्रो बी आर छीपा, नितिन जैन प्रमुख थे। विश्वविद्यालय के शिक्षकों में प्रो. अरविंद पारीक, नीरज भार्गव, प्रो. प्रवीण माथुर, प्रो. शिव प्रसाद, प्रो शिव दयाल, डॉ. आशीष पारीक, कुलसचिव पद्मिनी सिंह, प्रो. नरेश धीमान, डॉ. डी एस चौहान, डॉ. सुनील टेलर सहित बड़ी संख्या में कर्मचारी एवं छात्र उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. ऋतु माथुर ने किया।

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