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नई पीढ़ी को महाराजा दाहरसेन के जीवन व बलिदान की गाथा की जानकारी होना आवश्यक : महामण्डलेश्वर हंसराम

नई पीढ़ी को महाराजा दाहरसेन के जीवन व बलिदान की गाथा की जानकारी होना आवश्यक : महामण्डलेश्वर हंसराम

विश्व के वर्तमान परिपेक्ष में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन पर ऑनलाइन संगोष्ठि संपन्न


अजमेर (अजमेर मुस्कान)।
विश्व के वर्तमान परिपेक्ष में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन पर 1312वें बलिदान दिवस के अवसर पर ऑनलाइन संगोष्ठि का आयोजन किया गया।

संगोष्ठि को आर्शीवाद देते हुये हरी शेवा उदासीन सनातन आश्रम, भीलवाड़ा के महामण्डलेश्वर हंसराम उदासीन ने कहा कि नई पीढी को महाराजा दाहरसेन के जीवन व बलिदान की गाथा की जानकारी होना आवश्यक है, सरकारों द्वारा इसे पाठयक्रमों में जोड़ना चाहिए व शोध संस्थानों के जरिये आमजन तक इतिहास की जानकारी हो। उसका मुख्य कारण तीन सुधारे देश को सन्त सती व सूर। हमे इतिहास में कम देखने को मिलता है कि महाराजा दाहरसेन, पत्नी लाडी बाई व पुत्रियां सूर्यकुमारी व परमाल का भी बलिदान हुआ। अजमेर के स्मारक पर सभी तीर्थयात्रा के रूप पर दर्शन करने चाहिये। यहां महापुरूषों की मूर्तियों के साथ हिंगलाज माता मन्दिर व जगद्गुरू श्रीचन्द्र भगवान व महात्माओं की मूर्तियां है।

मुख्य वक्ता पूव सांसद व राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि संसार में सबसे पुरानी व समृद्ध सिन्धु घाटीसभ्यता है वहां का कल्चर व रहन सहन हमे सिखाता है सिन्धु नदी के किनारे वेदो की रचना की गई और व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र कराची सिन्ध में था। दुनिया में जहां पहनावा नहीं था सिन्ध ने सभ्यता सिखाई है। शाह साहब ने कहा कि भगवान सब जगह होगा मगर हिंगलाज में मुझे भगवान दिखता है। मेरे सिन्ध प्रवास के दौरान देखा गुरू गौरवनाथ का टीला है और उस समय सभी को बसाया व संस्कार दिये। महाराजा दाहरसेन के पूरे परिवार के बलिदान से प्रेरणा के लिये मुझे नगर सधार न्यास में अध्यक्ष का कार्य करने का अवसर मिला तो हमने यह स्मारक बनवाया और देश भर में स्मरण करने का अवसर मिल रहा है। सिन्ध के बिना हम अपने आपको अधूरा महसूस करते हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार श्याम सुन्दर भट्ट ने कहा कि महाराजा दाहरसेन के जीवन व उसके काल खण्ड पर अधिक शोध की आवश्यकता है। हमें शोधकार्य के लिये उनके समय काल का इतिहास, उनके बलिदान से पूर्व में सिन्ध का इतिहास व उसके बलिदान के बाद का इतिहास पूरा लिखवाना चाहिये व शोध कर पूर्ण इतिहास सामने आना चाहिये। महाराजा दाहरसेन के नाम का उच्चारण भी अलग अलग किया जाता है परन्तु इतिहास में इनके बलिदान की सही जानकारी भी इतिहासकारो को सही जानकारी देनी है और विद्यार्थियों के लिये शोध का विषय है।

भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि संगठन की ओर से देश भर में संगोष्ठियां, देशभक्ति आधारित कार्यक्रम, रक्तदान शिविर व प्रश्नोतरी के कार्यक्रमों से बाल संस्कार शिविरों के विद्यार्थियों व युवाओं को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। स्मारक के निर्माण के बाद निरंतर कार्यक्रमों में नाटक मचंन के साथ देशभक्ति कार्यक्रम प्रारम्भ हुए हैं। स्मारक पर 1857 से 1947 तक स्वतंत्रता आंदोलन में बलिदान हुये महापुरूषों में से हेमू कालाणी, राणा रतन सिंह व रूपलो कोल्ही की मूर्ति भी स्थपित हो चुकी है।

सिन्ध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान के अण्यक्ष कवंल प्रकाश किशनानी ने कहा कि सिन्धुपति महारजा दाहरसेन पर जिन साहित्यकारों ने पुस्तकंे लिखी है व आमजन तक उसे पहुचाने का भरपूर प्रयास किया है नाटक के द्वारा गीतों के माध्यम से नई पीढी को जोडना चाहिये व सरकार से समारोह समिति के द्वारा एक ज्ञापन दिया जायेगा जिसमें स्मारक पर महाराजा दाहरसेन व सिन्ध की झलकियां पैनोरमा के जरिये आमजन तक पहुंचे।

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