अजमेर (अजमेर मुस्कान)। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय का एकादश दीक्षांत समारोह शनिवार को राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। समारोह में बड़ी संख्या में शोधार्थियों को विद्या वाचस्पति एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को गोल्ड मैडल प्रदान किए गए। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने दीक्षांत उद्बोधन दिया। उपमुख्यमंत्री प्रेमचन्द बैरवा एवं जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र ने कहा कि दीक्षांत विद्यार्थियों के लिए नव जीवन में प्रवेश का उत्सव है। यह वह अवसर है जब विद्यार्थी अर्जित शिक्षा का उपयोग राष्ट्र और समाज के विकास में करने के लिए तैयार होता है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा की सार्थकता इसमें नहीं है कि उससे हम कोई पद, नौकरी या अन्य किसी तरह की भौतिक सफलता प्राप्त कर लें। शिक्षा की सार्थकता इसमें है कि हम रूढ़ियों से मुक्त होने की ओर अग्रसर हों। उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन पर चर्चा करते हुए कहा कि समाज को रूढ़ियों से मुक्त कर वेदों का सहज, व्यावहारिक भाष्य करने का महती कार्य उन्होंने ही पहले पहल देश में किया था। वह व्यक्ति नहीं अपने आपमें संस्था थे। ‘वेद की ओर वापस चलो‘ का नारा देते हुए उन्होेंने राष्ट्र को रूढ़ियों और कुरीतियों से निकालकर आदर्श जीवन मूल्यों के जरिए आगे बढ़ने का शंखनाद किया। उनके जीवन दर्शन में उस नैतिक शिक्षा पर ही अधिक जोर दिया गया है।
महर्षि दयानंद सरस्वती के शिक्षा पर विचारों को आज के संदर्भों में सभी स्तरों पर अपनाने की आवश्यकता है। नई शिक्षा नीति के आलोक मे ंहम स्वामीजी के विचारों से पाठ्यक्रमों को इस तरह से नया रूप दें कि विद्यार्थी सर्वांगीण विकास की राहों पर तेजी से आगे बढ़ सकें।
उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि देश की नई शिक्षा नीति पूरी तरह से विद्यार्थी केन्दि्रत है। यह प्राचीन भारतीय ज्ञान के आलोक में ऎसे पाठ्यक्रमों के निर्माण पर जोर देती है जिससे विद्यार्थी हमारी संस्कृति से जुड़े एवं जीवन मूल्यों में आधुनिक विकास की ओर अग्रसर हो सके। इस नीति में कौशल विकास पर विशेष जोर दिया गया है। रोजगारोन्मुखी नवाचारों को अपनाने की बात हैैै। ताकि विद्यार्थी अपने परिवेश को समझते हुए राष्ट्र को संपन्नता की ओर अग्रसर कर सकें।
उन्होंने कहा कि उभरती डिजिटलीकृत दुनिया में नए आविष्कारों और नवाचारों के साथ-साथ पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में असीमित वृद्धि की संभावना है। इस क्षेत्र मे लगभग पांच करोड़ नौकरियां उत्पन्न होने की संभावना जताई जा रही है। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय इस दिशा में ध्यान देते हुए ऎसे पाठ्यक्रम निर्मित करे जिससे आतिथ्य उद्योग मे ंहम बेहतर मानव संसाधन तैयार कर सकें।
मिश्र ने कहा कि यह समय हम-सबके लिए आजादी के अमृतकाल की ओर अग्रसर होने का है। युवा शक्ति भारत के भविष्य की उज्जवल राहों की संवाहक बनें। इसके लिए यह जरूरी है कि मेक इन इंडिया की दिशा में हम आगे बढें। ऎसे स्थानीय उत्पाद तैयार करने की ओर अग्रसर हों जो विश्वस्तर पर निर्यात हो सकें। हम शिक्षा के जरिए अपनी उच्चतम क्षमताओं का विकास करें।
उन्होंने कहा कि भविष्य की आवश्यकताओं के संदर्भ में विश्वविद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शोध का देश का उत्कृष्ट केन्द्र बनें। यहां ऎसे पाठ्यक्रम तैयार हों जिससे युवाओं के लिए भविष्योन्मुख अधिकाधिक मार्ग प्रशस्त हो सकें। युवा रोजगार पाने की बजाय देने के लिए तैयार हो सकें।
नई शिक्षा नीति बहुआयामी, देश का होगा विकास - देवनानी
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने दीक्षांत भाषण में कहा कि 21वीं सदी का इमजिर्ंग इंडिया न केवल आर्थिक और तकनीकी रूप से महाशक्ति बनना चाहता है, बल्कि विश्वगुरु के रूप में उभरने का संकल्प रखता है। इस ध्येय की प्राप्ति के लिए कुछ निश्चित मूल्यो का होना आवश्यक है। ऎसे सभी मानवीय नैतिक मूल्य भगवान राम के चरित्र में दिखाई देते हैं और इसलिए राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आध्यात्मिक व सांस्कृतिक पुनर्चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। भारतीय धर्म, कर्तव्य बोध कराता है। धर्म का आशय ही कर्तव्य होता है जैसे मातृधर्म, पितृ धर्म, राष्ट्र धर्म इत्यादि, ऎसे दृष्टिकोण है जो धर्म का आशय कर्तव्य ही बताते हैं।
उन्होंने कहा कि धर्म का आशय रूढ़िवादिता नहीं है। आज इस भौतिकवाद के दौर में हमारा यह दायित्व है कि हम वैज्ञानिक तौर तरीकों से वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन और आध्यात्म को आत्मसात करें। आज का युवा स्वयं को परिवार, समाज और राष्ट्र के साथ समायोजित करे, यही उसकी दीक्षा है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के काल में मैकाले द्वारा विकसित शिक्षा पद्धति में भारतीय जीवन मूल्यों का स्थान नहीं था, सिर्फ उनके लिए बाबू तैयार करने वाली शिक्षा थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा में धीरे-धीरे परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की गई। नई शिक्षा नीति 2020 द्वारा इसलिए लाई गई है कि अंतर अनुशासकीय, बहु विषयक, बहुभाषी एवं बहुआयामी दृष्टिकोण के द्वारा एक बालक, एक किशोर एवं एक शोधार्थी भारतीय मूल्यों एवं संवेदनाओं को विकसित करें। नई शिक्षा नीति में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से जुड़े विषयों के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। साथ ही प्राचीन भारतीय संस्कृति, वैदिक ज्ञान, सनातन जीवन मूल्यों के महत्व को भी स्पष्ट किया गया है।
भारत के वर्तमान नेतृत्व में 2047 तक देश विकसित भारत के रूप में स्थापित होगा। भारत रोजगार के अवसरों की अभिवृद्धि के साथ-साथ स्टार्टअप्स को पूरी दुनिया के सामने स्थापित कर रहा है। इस विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना आप और हम सबका महत्वपूर्ण दायित्व है। इसके लिए हमें तैयार होना है। यही हमारी शिक्षा और दीक्षा का ध्येय है। नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों को भारतीय संस्कृति के जीवन्त केन्द्र बनाने पर जोर दिया गया है।
शिक्षा असीम विकास की प्रक्रिया-डॉ. बैरवा
उप मुख्यमंत्री डॉ. प्रेमचन्द बैरवा ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के अनुसार “शिक्षा” मनुष्य को उसके आदर्श और असीम विकास की ओर ले जाने की प्रक्रिया है। विद्यार्थी जीवन में अध्ययन के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है और जीवन में एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान, ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे कि स्वयं को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि ये सबसे बड़ा पाप है। जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी। दिन में एक बार खुद से जरूर बात करो, वरना आप दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति से बात करने का मौका खो देंगे। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सकें, चरित्र निर्माण कर सके और विचारों का सामंजस्य कर सकें वहीं वास्तव में शिक्षित कहलाने योग्य है।
उन्होंने कहा कि हमें ऎसी शिक्षा चाहिए जिससे चारित्रिक, मानसिक एवं बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास हो। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारतीय संस्कृति में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी, जहाँ विद्यार्थी स्वजनों के मोह से मुक्त होकर गुरु के सानिध्य में संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के साथ आध्यात्मिक उन्नति करते हुए प्रकृति एवं समाज के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन कर अनुशासन पूर्ण जीवन की शिक्षा प्राप्त करते थे।
लौटाएंगे शिक्षा नगरी का गौरव - रावत
जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि विश्वविद्यालय व्यक्ति एवं व्यक्तित्व निर्माण का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। वे स्वयं भी महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही अजमेर शिक्षा नगरी के रूप में विख्यात रहा है। बाद के समय में अजमेर का यह वैभव कहीं खो गया। अब हम जब मिल कर अजमेर का पुराना शैक्षिक गौरव पुनः लौटाने के लिए काम करेंगे। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित अपने सभी गुरूजनों को भी प्रणाम किया।
इससे पूर्व सभी अतिथियों ने विश्वविद्यालय में संविधान पार्क का शुभारंभ किया। कुलपति अनिल कुमार शुक्ला ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में विधायक वीरेन्द्र कानावत, अजय सिंह, संभागीय आयुक्त महेश चन्द्र शर्मा, आईजी पुलिस लता मनोज कुमार, जिला कलेक्टर डॉ. भारती दीक्षित, पुलिस अधीक्षक देवेन्द्र विश्नोई, अतिरिक्त जिला कलेक्टर गजेन्द्र सिंह सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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