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अजयमेरु प्रेस क्लब : गीत, गजल, कविताओं के फूलों से महकी साहित्य की फुलवारी

अजयमेरु प्रेस क्लब की मासिक साहित्य गोष्ठी संपन्न

अजयमेरु प्रेस क्लब की मासिक साहित्य गोष्ठी संपन्न

अजमेर (अजमेर मुस्कान)। अजयमेरु प्रेस क्लब की मासिक साहित्यिक गोष्ठी "साहित्यधारा" रविवार 19 मई को चंद उम्दा गज़लों, गीतों और कविताओं की खुशबू बिखेरते हुए वैशाली नगर पेट्रोल पंप के पीछे स्थित क्लब के सभागार में सम्पन्न हुई। जहां गीतों के तरन्नुम थे, तो साथ ही ग़ज़लों के फलसफे थे, वहीं कविताओं की माला साहित्य के गुलशन को रंगीन किये हुए थी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ रचनाकार पुष्पा क्षेत्रपाल ने बेटियां और परिवार शीर्षक से अपनी संजीदा कविताएं प्रस्तुत की। उनकी कविता "परिवार" में उन्होंने उन माता पिता की मनःस्थिति का मार्मिक चित्रण किया, जिनके बच्चे कहीं परदेस बस जाते हैं और बुजुर्ग एकाकी जीवन जीने को मजबूर होते हैं।

कार्यक्रम का आगाज़ सुनील कुमार मित्तल ने अपनी कविता से किया। उनकी कविता  "एक बूंद तन भिगो जाती है, तो एक बूंद मन भिगो जाती है" तथा लघुकथा "मूँछ वाली माँ" ने तारीफ बटोरी।

रचनाकार कुलदीप खन्ना की पंक्तियां "चांद की चांदनी कहाँ मुक़द्दर है" ने दिल छू लिया तो, रजनीश मैसी के मुक्तकों व ग़ज़ल ने दाद बटोरी। उनकी पंक्तियां "एक मुद्दत से सूना पड़ा है ये रास्ता, खुद की जानिब बाकी बहुत सफर है" सहित पूरी ग़ज़ल ने वाहवाही लूटी।

वीरेंद्र सक्सेना ने जहां अपनी ग़ज़ल "मुंसिफ है हर शख्स मेरे गुनाह का" से दाद पाई वहीं ब्यावर से आये चंद्रभान सिंह ने अपनी रचना "कुछ करने से पहले डर लगता है" सुनाकर आम आदमी के मन के हालातों का सटीक चित्रण किया।

इस बीच कवियत्री काजल खत्री ने प्रेम-रस से सराबोर अपनी कविता "विदा के वक्त उसका कस कर थाम लेना हथेलियां मेरी" सुनाकर माहौल खुशनुमा बना दिया। वरिष्ठ ग़ज़लकार तस्दीक अहमद "तस्दीक" की ग़ज़लों ने महफ़िल लूट ली। उनकी ग़ज़लों के फ़लसफ़े और उस पर तरन्नुम में कहा गया एक-एक शेर तालियां बटोरता रहा।

उनके अशआर  "उम्र भर आजमाइश मेरी कीजिए, मुझ से लेकिन न धोखाधडी़ कीजिए... कुछ तअल्लुक़ तो कायम रहे दरमियाँ दोस्ती गर नहीं दुश्मनी कीजिए" ने महफ़िल में समां बांध दिया।

अजयमेरु प्रेस क्लब के इस कार्यक्रम में पहली बार शिरकत करते हुए अनिता यादव ने अपनी कविता "ज़िन्दगी मेरी इस तरह जलती रही जिस तरह जलते हैं अधजले, अधबुझे अंगारे" सुनाकर दर्द के एहसास को हर दिल तक पहुंचाया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अमित टंडन ने अनेक मुक्तक व शेर कहते हुए रचनाकारों की कड़ियों को जोड़े रखा। टण्डन की कविता "माँ बाबूजी मैं और बचपन" ने जहां सुनने वालों को बाल्यकाल की यादों में डुबो दिया, वहीं उनकी ग़ज़ल "जिसे कोई घास नहीं डालता, गुलकंद का ख्वाब लिए बैठा है" ने जमकर दाद बटोरी।

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