अजमेर (अजमेर मुस्कान)। सिन्धी समाज महासमिति, अजमेर की ओर से नए प्रकल्प ’सिन्ध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान्’ का रविवार को श्री अमरापुर सेवा घर, 423 प्रगति नगर, कोटड़ा, अजमेर के द्वितीय तल पर विधिवत शुभांरभ पूजा अर्चना, मोली के बंधन व गणेश अराधना से प्रारम्भ हुआ।
मुख्य अतिथि राजस्थान सिन्धी अकादमी के अध्यक्ष रहे मोहनलाल वाधवाणी ने अपने अनुभव के आधार पर सिन्धी अकादमी व राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद में शोध कार्य का महत्व बताते हुए कहां कि यदि मन में कोई धारणा बना ले तो कोई काम मुश्किल नहीं होता है। शोध संस्थान का यह प्रकल्प आने वाले भविष्य में युवाओं को भाषा से इतिहास, साहित्य की जानकारी देकर उसे अग्रीम पंक्ति में खड़ा करने में मुख्य भूमिका अदा करेगा। यह शोध संस्थान देश दुनिया में अपनी सफलता से विशेष पहचान बनायेगा जिसके लिये सिन्धु सभा पूर्ण सहयोग करेगा।
अध्यक्षता करते हुए सुधार सभा के संरक्षक ईश्वर ठाराणी ने कहां कि अजमेर हमेशा सिन्धी विषय को लेकर अग्रिणीय रहा है। 1947 में विभाजन के बाद अजमेर में 2 माह के अन्दर ही उच्च शिक्षा तक सिन्धी स्कूल प्रारम्भ हो गया था व आज सिन्ध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान की स्थापना सबसे पहले अजमेर में हुई है जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगी। सिन्धी सिखने की कोई उम्र नहीं होगी यदि व्यक्ति जजबा कर ले तो कोई भी उम्र में जाकर वह अपनी मातृ भाषा सीख सकता है व अपने बच्चों से घर पर मातृ भाषा का उपयोग करने पर जोर दिया। सिन्ध की इतिहास व साहित्य की जानकारी जन-जन तक पहुंचे उसके के चलन में रहने वाली भाषा हिन्दी व अंग्रेजी में साहित्य की पुस्तकें छपवा कर लोगों तक पहुंचाने की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार व लेखक गिरधर तेजवानी ने कहां कि युवा पीढी को सिन्धी विषय पर लेखन कार्य व ऑनलाइन प्रचार पर जुड़ाव व सक्रियता से भाग लेना चाहिए।
सिन्धी सेंट्रल पंचायत के उपाध्यक्ष व भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहां सिन्धी विश्वविद्यालय की स्थापना अवश्य हो व महाराजा दाहरसेन व उसके परिवार के बलिदान से प्रेरणा लेकर शोध काम में युवा पीढ़ी को आगे बढ़ना चाहिए।
हिन्दु सिन्धी समाचार पत्र के सम्पादक हरीश वर्याणी ने कहां कि सिन्ध व हिन्द के इतिहास पर संकलन का प्रकाशन के कार्य में अग्रणीय भूमिका अदा करनी चाहिए।
म.द.स. विश्वविद्यालय सिन्धु शोध पीठ की पूर्व निर्देशक लक्ष्मी ठाकुर ने कहां कि विश्विद्यालय के सहयोग से सिन्धी विषय में शोध कार्य करने चाहिए जिसके लिए शोध संस्थान में शोध कार्य में सभी को सहयोग के लिये आगे आना चाहिये।
शिक्षाविद् व गायिका शांता भिरयाणी ने कहां कि शिक्षण के साथ गीत संगीत में रूचि पैदा करते हुए सिन्धी भाषा को जुड़ाव करना चाहिए। उन्होने सिन्धु गीत- उथो सिन्धुअ जा वारिस, सिन्ध खे बचायो...... प्रस्तुति पर सभी का मन मोह लिया।
शोध संस्थान की जानकारी -
अध्यक्ष कवंल प्रकाश किशनानी शोध संस्थान की जानकारी देते हुये कहां कि सिन्धी समाज महासमिति स्वामी हिरदाराम जी की प्रेरणा से लगातार से सेवा व सामाजिक कार्यों में अग्रणीय रहीं है। शोध केन्द्र में संकल्न में साहित्य में आध्यात्मिक, साहित्य, इतिहास, कहानिया, उपन्यास, एकांकी (नाटक), कविताएं, संगीत, शिक्षा, अन्तर्राष्ट्रीय किताबें, भारत का संविधान व शब्द कोश, स्वास्थ्य, स्वतन्त्रता सैनानी व राजनीतिज्ञ, धर्म-शास्त्र, सन्त, मुनि महात्मा, प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध है। इन पुस्तकों में रामायण, महाभारत, गीता, भारत का सविधान, सिन्धी, हिन्दी व अन्य भाषाओं डिक्शनरी, विभाजन की त्रास्दी, परूषों व महिलाओं के द्वारा पहनी जाने वाली पौशाकें, टोपियां व पगड़ियां, सिन्ध की लोक कथाऐ, लोक गीत, रहन सहन, खान पान, सिन्ध के कवि व सिन्ध के तीर्थ, दर्शनीय स्थल, 1857 से 1947 तक स्वाधीनता आंदोलन में शहीद हुए महापुरुष व भाग लेने वाले सैनानियों का सिन्ध के महापुरुषों के वर्णन के साथ उनके स्थानों की जानकारी व जीवनी का वर्णन मिलता है। कुलदेवी हिंगलाज माता से संबंधित भी सामग्रियां उपलब्ध है। सभी सिन्ध के शहरों की नुख, गोत्रों की भी जानकारीयां उपलब्ध है व 1947 में जब देश का विभाजन हुआ उस समय अपनी मातृभूमि को छोड़कर आने पर इतिहासकारों व साहित्यकारों ने सिन्ध से आए व्यक्तियों के दर्द को लिपिबद्ध किया, उनकी प्रतियां भी उपलब्ध है। सिन्धी भाषा के विद्यार्थी प्रतियोगिता व शोधकर्ताओं के लिए प्रचुर मात्रा में सिन्धी व देवनागरी में साहित्य व पुस्तकें उपलब्ध है।
आगामी योजनाओं की जानकारी देते हुए किशनानी ने बताया कि इन पुस्तकों को देवनागिरी, हिन्दी व अग्रेंजी में भी अनुवाद कर प्रकाशन कार्य संस्थान द्वारा किया जायेगा व पुस्तकों को डिजिटल किया जाएगा। प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता लाने और सिंध के समृद्ध इतिहास और साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित किया गया है। पुस्तकों के एकत्रीकरण का कार्य जारी रहेगा व उनका अनुवाद का कार्य के साथ सिन्धी भाषा सिखाने की साप्ताहिक कक्षाएं हर उम्र के वर्ग के लिए रहेगी।
कार्यक्रम के प्रराम्भ में हरीश केवलरमाणी द्वारा भेट की गई आराध्यदेव झूलेलाल की मूर्ति का अनावरण किया गया। तत्पश्चात झूलेलाल व स्वामी हिरदाराम जी मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया गया। इस अवसर पर आश्रम में रहने वाले आवासी पुरूषोतम मूलचन्दाणी व दिनेश रायसिंघाणी, सहायक जया जगवाणी, विष्णु अवतार भार्गव, जया मेठाणी को शोध कार्य में भूमिका अदा करने पर उनका सम्मान किया गया। आभार व्यक्त करते हुए महासचिव हरी चंदनाणी द्वारा व अन्त में सामूहिक राष्ट्रगान का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर चारण शोध संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष व पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत, ताराचन्द, दिलीप थादाणी, प्रभु ठाराणी, विनीत लोहिया, जोधा टेक्चन्दाणी, राजा थारवाणी, चन्द्र मंघाणी, छांगोमल, सुनील खानचंदाणी, नीलम परियाणी, प्रेम केवलरामाणी, मंघाराम भिरयाणी, रमेश मेंघाणी, किशन ग्याणी, ईसर भम्भाणी, शान्ता भम्भाणी, ढोलण राही, डाॅ. कमला गोखलानी, प्रकाश जेठरा, जयप्रकाश मंघाणी, पुरूषोत्तम तेजवाणी, कौशल्या, माला , भारती देवी, दिया, शान्ता भिरयाणी, वीना बदलाणी, कविता बच्चाणी, हरेश मोदियाणी, सीताराम बच्चाणी, नारायणदास थदाणी, महेश मूलचन्दाणी, तुलसी सोनी, भगवान साधवाणी, रीटा चंदीरामाणी, कैलाश लखवाणी, राजेश टेकचन्दाणी, जयकिश वतवाणी, उत्तम गुरबक्षाणी, राजकुमार जोधाणी, चन्द्र प्रकाश ईसराणी, हरीराम कोडवाणी, नरेन्द्र सोनी, चन्द्र नावाणी, महेश टेकचन्दाणी, किशन कमला बुटाणी, बलराम हरलानी, लक्ष्मण चन्दीरामाणी, प्रो. अर्जुन कृपलानी ब्यावर, प्रकाश छबलाणी, प्रभा, रमेश ललवाणी, जेठो बालाणी, गोविन्द छबलाणी, मोहन तुलस्याणी, भारती गुरूनानी, डाॅ. सुब्रुतो दत्ता, पूजा तोलाणी, रिचा मेठाणी, नानकराम रायसिंघाणी, पुष्पा मोदियाणी, मुकेश आहुजा, देवीदास साजनाणी सहित अलग अलग संगठनों के कार्यकर्ता मौजूद रहे।
0 टिप्पणियाँ