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राष्ट्रगान में सिन्धु का आना, सिन्ध को हिन्द में मिलने की देता है प्रेरणा - कंवल प्रकाश

राष्ट्रगान में सिन्धु का आना, सिन्ध को हिन्द में मिलने की देता है प्रेरणा - कंवल प्रकाश

सिन्धी भाषा दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन

अजमेर (अजमेर मुस्कान)। सिन्धी समाज महासमिति द्वारा श्री अमरापुर सेवा घर प्रगति नगर, कोटड़ा, अजमेर में आवासीयों के साथ संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें 10 अप्रेल 1967 में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया व सिन्धी भाषा को संवैधानिक भाषा का दर्जा मिला था। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 10 अप्रेल को सिन्धी भाषा दिवस मनाया जाता है।

अध्यक्ष कंवल प्रकाश किशनानी ने कहां कि हमें सिन्धी भाषा दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हिन्द सिन्ध के बगैर अधूरा है, हमारी नई पीढ़ी के लिए यह संदेश आवश्यक है कि हमारे राष्ट्रगान में ‘पंजाब-सिन्धु, गुजरात-मराठा, द्रविड़ उत्कल बंग’ हमें सिन्ध को हिन्द में मिलाने के लिए प्रेरणा देता है, वह दिन दूर नहीं जब अखण्ड भारत के निर्माण में सिन्ध की भूमि को हिन्द में वापस जोड़ा जाएगा। सिन्धी समाज आर्थिक दृष्टीकोण से मजबूत है व केन्द्र व राज्य सरकारों को कर देने में मुख्य भूमिका अदा करते है। समिति द्वारा युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए सिन्ध इतिहास व साहित्य शोध संस्थान को प्रारंभ किया जाएगा। जिसका कार्य अभी जारी है।

संस्था के महासचिव हरी चन्दनानी ने कहां कि सिन्धी भाषा के कुछ निजी शब्द (ब द ग ज ´ ड.) हैं जो दुनिया के लोग सिन्धी भाषी की तरह स्पष्ट नहीं कह सकते। सिन्धी बच्चा दुनिया के किसी भी हिस्से, प्रान्त और विदेश की भाषा जल्द ग्रहण कर सकता है और थोड़े समय के सम्पर्क से ही अच्छी तरह कठिन से कठिन भाषा का भी शुद्ध उच्चारण कर सकता है।

शंकर बदलानी ने कहां कि हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 7 अप्रैल 1967 में संसद में सिन्धी भाषा मान्यता पर भाषण दिया था और कहां कि सिन्धी भाषा के विकास की वकालत करते थे, उसके लिए सिन्धी समाज उनका आभार मानती है। उन्होंने कहां था कि सिंधी भाषा मेरी मौसी है, सिंधी सारे देश की भाषा है। सिन्धी समाज प्राचीन काल से पानी की बड़ी नौकाओं बेड़ों में जाकर व्यापार विदेशों में करते थे और आज भी जकार्ता, दुबई, जापान, अमेरिका और दुनिया के कई देशों में अपनी भाषा की व्यवस्था स्कूलों, सत्संग भवनों और सिन्धु भवनों कर रही हैं।

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