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ऋषि मेले में देशभर से आर्य विद्वानों की उपस्थिति में विभिन्न गतिविधियां आयोजित

ऋषि मेले में देशभर से आर्य विद्वानों की उपस्थिति में विभिन्न गतिविधियां आयोजित

स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान के कवियों पर भारी प्रभाव था महर्षि दयानन्द सरस्वती का

ऋषि मेले में देशभर से आर्य विद्वानों की उपस्थिति में विभिन्न गतिविधियां आयोजित

अजमेर (AJMER MUSKAN)।
महर्षि दयान्द के समकालीन राजस्थान में कई कवि थे जिनका महर्षि दयानन्द से सम्पर्क के बाद 'सोने पे सुहागा' की लोकोक्ति चरितार्थ हुई। उस समय अंग्रेजों द्वारा लगातार भारत और भारतीय संस्कृति का निरादर किया जा रहा था।

देश में सर्वप्रथम पूर्ण स्वाधीनता की मांग को महर्षि दयानन्द द्वारा व्यक्त किए जाने को राजस्थान व गुजरात के प्राय: सभी कवियों ने हाथों-हाथ लपक लिया। उनकी रचनाओं में देश तथा देश की स्वाधीनता मुखर स्वर बन गया। उक्त विचार हिन्दी-राजस्थानी के प्रसिद्ध साहित्यकार पूर्व सांसद ओंकारसिंह लखावत ने महर्षि दयानन्द सरस्वती के139वें बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में परोपकारिणी सभा के तत्त्वावधान में आयोजित ऋषि मेला के अन्तर्गत शनिवार को ''महर्षि दयानन्द सरस्वती का राजस्थान-गुजरात के कवियों पर प्रभाव गोष्ठी में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता संग्राम में राजपूताना का विशेष योगदान रहा है। सुप्रसिद्ध पुस्तक के लेखक और क्रान्तिकारी क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहट के पिता कवि कृष्णसिंह बारहट महर्षि दयानन्द के शिष्य थे। राजस्थानी साहित्यकार कवि अमरदान लिखते हैं कि 'ऋषि दयानन्द तूने देश भक्ति खड़ी की। कवि समर्थदान, कवि जयकरण, उज्ज्वल ऋषि दयानन्द से प्रभावित थे। ऋषि भक्त जोरावरसिंह ने लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका। कवि केसरीसिंह बारहट लिखते हैं कि यदि महर्षि दयानन्द नहीं आते तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई नहीं की जा सकती थी। स्वामी दयानन्द ने ही स्वदेश स्वसंस्कृति के लिए बलिदान होने का वैचारिक आधार दिया। कृष्ण सिंह लिखते हैं- अंत आषाढ़ दयानन्द आओ, छोड़ी ज्ञान घटा धन छाओ। गणेशपुरी गुजराती कवि लिखते हैं कि महर्षि दयानन्द ने वेदज्ञान दीपक से समाज को डूबने से बचा लिया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व लोकायुक्त सज्जनसिंह कोठारी ने महर्षि दयानन्द सरस्वती के राजस्थान से जुड़ी प्रमुख घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी।

शनिवार को ऋषि मेला में देश के विभिन्न स्थानों से ब्रह्मचारियों, आर्य विद्वानों व संन्यासियों का भारी संख्या में लोगों के आने का क्रम जारी रहा। सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान्, प्रख्यात साहित्यकार और वैज्ञानिक प्रवचनों-उद्बोधों से जनसाधारण का ज्ञानवर्द्धन और मार्गदर्शन कर रहे हैं। वैदिक संन्यासी मेले में समाज से अन्धविश्वास, जातिवाद, कुप्रथा, कुरीतियाँ भाषावाद, प्रान्तवाद हटाकर मानव का परम हितकारी वेद ज्ञान और आचरण से जुड़ने का सन्देश दे रहे हैं। 

विश्व राज्य संचालन में प्रचलित वैदिक परंपराएं गोष्ठी में बोलते हुए कम्प्युटर वैज्ञानिक प्रो. डॉ. शत्रुञ्जय रावत ने कहा कि वेद का निर्देश है कि शासक, शासकीय कर्मचारी, राज्यार्य सभा (संसद) और जनसामान्य सब एक-दूसरे से अुनशासित हों-तभी पूर्ण सर्वकल्याणकारी लोकतन्त्र होगा। वैदिक राजा का विद्वान् प्रबुद्ध आचरणवान लोगों द्वारा चयन होता है। वेदों का यह मूलभाव आज विश्व के प्राय: सभी लोकतान्त्रिक देशों में कुछ कमियों के साथ विद्यमान है। साथ ही प्रसिद्ध बड़ी कम्पनियों के प्रबन्धन में भी यही भावना है। वेद कहता कि संसद में पढ़े-लिखे, सदाचारी व अनुशासित व्यक्ति ही रहें। वैदिक व्यवस्था गुण कर्म स्वभावानुसार वर्ण व्यवस्था पर आधारित है, जन्म पर आधारित नहीं। योग्य व्यक्तियों को ही शासन-प्रशासन में स्थान मिलना चाहिए। वेद में स्वतन्त्रता को प्राथमिकता है पर सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में अनुशासन में रहने की बात कही गई है।

अथर्ववेद पारायण यज्ञ में लोगों ने आहुतियां प्रदान की। मुख्य यजमान राजस्थान के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति सज्जनसिंह कोठारी थे। यज्ञ के ब्रह्मा डॉ. प्रमोद योगार्थी ने कहा कि मानव मात्र के कल्याण के लिए ईश्वर ने वेदज्ञान प्रदान किया। पाप मन में पलता है और अपराध शरीर से होता है। यदि पवित्र वेदज्ञान से मन को शुद्ध कर लें तो पाप-अपराध न होंगे, जीवन सुखी होगा। यज्ञ के उपरान्त ''गणनां त्वा गणपति हवामह वेद मन्त्र की व्याख्या करते हुए वैदिक विद्वान् मुनि सत्यजित् ने कहा सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ही गणेश है। गण का अर्थ समूह होता है। सभी प्राणी समूहों का पति=रक्षक पालक सर्वव्यापक ईश्वर है। हाथी के सिर और सूंड वाले गणेश एक काल्पनिक देवता है, ज्ञान और विवेक को ग्रहण करने का आलंकारिक वर्णन है। यदि आप अपना और देश-समाज का कल्याण चाहते हो तो आपको बड़ा वेदज्ञान अपने सिर (मस्तिष्क) में धारण करना पड़ेगा और एकाग्र होकर शुभ ज्ञान-विचार सुनना (कान) होगा- कान बड़ा करना होगा। इन बातों को जीवन में धारण करना, वेदानुसार आचरण ही ईश्वर पूजा है।

वानप्रस्थ दीक्षा संस्कार : स्वामी मुक्तानन्द परिव्राजक द्वारा आचार्य सत्यव्रत, आचार्य देशराज और रोहित सिंह को वैदिक विधि-विधान के साथ वैदिक वानप्रस्थ आश्रम की दीक्षा प्रदान की गई। दीक्षित वानप्रस्थियों को स्वामी ने सदा ईश्वर के निकट रहने, लगातार अपना ज्ञान-विज्ञान बढ़ाते रहने और जनहित के लिए सदा प्रयत्नशील रहने का सन्देश दिया।

प्रख्यात विद्वान् का सम्मान : हैदराबाद से पधारे कई पुस्तकों के लेखक, कई प्रसिद्ध पुस्तकों का तेलगु भाषानुवादक डॉ. मर्रि कृष्णा रेड्डी, डी लिट. का परोपकारिणी सभा के प्रधान सत्यानन्द आर्य और मन्त्री मुनि सत्यजित् द्वारा नगद राशि प्रदान कर व शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर मुनि सत्यजित् ने कहा कि विद्वानों का सम्मान वस्तुत: विद्या का सम्मान है और यथार्थ ज्ञान और विद्वान् से ही समाज व देश का कल्याण होता है।

मेले का प्रमुख आकर्षण : ३० किलोग्राम भार वाले बृहद आकार की पुस्तक दिव्यवेदवाणी। जिसे डॉ. मर्रि कृष्णा द्वारा सम्पादित तेलगु भाषा में चारों वेदों के भाष्य की पुस्तक है, जो दर्शनार्थ रखी गई है।

ब्रह्मचारियों का सम्मान : वैदिक ज्ञान-विज्ञान प्राप्ति में सतत् संलग्र ब्रह्मचारी हरीश आर्य ब्रह्मचारी आकाश आर्य और ब्रह्मचारी यशवीर आर्य को मंच पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मन्त्री परोपकारिणी सभा ने कहा कि नई पीढ़ी को ज्ञान-विज्ञान युक्त करने पर ही जनहितकारी वैदिक संस्कृति की रक्षा हो सकेगी।

वेदगोष्ठी : का विषय है - 'उपनिषद वाङ्मय में ईश्वर का स्वरूप। में विद्वानों ने अपने शोध पत्र पढ़े। अध्यक्षता नरेश धीमान ने की।

वेद कण्ठस्थीकरण प्रतियोगिता : दक्षिण भारत सहित देशभर से पधारे वेद कण्ठस्थ करने वाले ब्रह्मचारियों का चयन प्रतियोगिता द्वारा की जा रही है। वेद में कुल 20379 मन्त्र है।

ऋषि मेले में देशभर से आर्य विद्वानों की उपस्थिति में विभिन्न गतिविधियां आयोजित

आर्यवीर दल सम्मेलन : संस्कृति रक्षा, शक्ति संचय व सेवा कार्य को समर्पित आर्यवीर दल का प्रान्तीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें मुख्य वक्ता नंदकिशोर कुरुक्षेत्र ने कहा कि शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ और वेदज्ञान से युक्त युवा पीढ़ी ही देश और संस्कृति की रक्षा करती है। अत: हम स्वस्थ हो अपने आंतरिक व बाह्य शत्रुओं को पहचाने और उनका नाश करें। संचालन आर्यवीर दल राजस्थान के प्रधान संचालक भवदेव शास्त्री ने किया। श्रीमती सरोज मालू को आर्य वीरांगना दल राजस्थान की प्रान्तीय संचालिका बनाया गया। अध्यक्षता वयोवृद्ध आर्यवीर मदन मोहन, गंगापुर सिटी ने की।

सम्मेलन में विशिष्ट आर्यवीरों को सम्मानित किया गया। शाम को आर्य वीरों ने जिला संचालक विश्वास पारीक के निर्देशन में योग एवं व्यायाम प्रदर्शन किया।

रविवार, 6 नवम्बर

5 से 6.30 तक - सूक्ष्म क्रियाएँ-आसन-प्राणायाम-ध्यान-सन्ध्या-आ. कर्मवीर

7 से 8.30 तक - अथर्ववेद पारायण यज्ञ, पूर्णाहुति, ब्रह्मा-डॉ. प्रमोद योगार्थी

8.35 से 8.55 तक - वेद प्रवचन- स्वामी विष्वङ् परिव्राजक

9 से 10 तक - प्रात:राश

9.30 से 12.30 तक - भजन, सम्मान, वेद कण्ठस्थीकरण पुरस्कार व व्याख्यान- महर्षि की दृष्टि में स्वदेशी व आर्यों का कर्त्तव्य- अध्यक्ष- श्री ओम्मुनि, वक्ता- मुनि सत्यजित्

12 से 2 तक - भोजन

2.30 से 5 तक - भजन, सम्मान व व्याख्यान- वैदिक विद्वानों के निर्माण में गति- अध्यक्ष- डॉ. वेदपाल, वक्ता- आ. सूर्यादेवी, स्वामी मुक्तानन्द परिव्राजक,

संचालक- आचार्य शक्तिनन्दन

5.30 से 6.30 तक - यज्ञ-सन्ध्या-डॉ. प्रमोद योगार्थी

6.30 से 8 तक - भोजन

8 से 9 तक - भजन, सम्मान व व्याख्यान महर्षि दयानन्द द्विजन्म शताब्दी व परोपकारिणी सभा- अध्यक्ष- श्री कन्हैयालाल आर्य

9 से 10 तक - धन्यवाद व समापन सत्र

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