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लम्पी स्किन डिजीज : आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग संक्रमण से बचाव के लिए है कारगर

लम्पी स्किन डिजीज : आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग संक्रमण से बचाव के लिए है कारगर

अजमेर (AJMER MUSKAN)।
गौवंश में हो रही लम्पी स्किन डिजीज की रोकथाम में आयुर्वेदिक औषध व्यवस्था भी कारगर हो सकती है।

पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. प्रफुल्ल माथुर ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज की रोकथाम के लिए राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। पशुओं के उपचार में आयुर्वेदिक औषध व्यवस्था भी कारगर है। लम्पी त्वचा रोग एक वायरल बीमारी है जो मवेशियों में लंबे समय तक रूग्णता का कारण बनती है। यह रोग पॉक्स वायरस-लम्पी स्किन डिजीज वायरस (एलएसडीवी) के कारण होता है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास की गांठों के रूप में प्रकट होता है। विशेष रूप से सिर, गर्दन, विभिन्न अंगों, थन (मवेशियों की स्तन ग्रंथि) और जननांगों के आसपास गांठें धीरे धीरे बड़े और गहरे घावों की तरह खुल जाती है।

उन्होंने बताया कि इसके लक्षण आमतौर पर हल्के से लेकर गंभीर रूप तक होते है। इसका पहला लक्षण 41 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तेज बुखार है। पशु सुस्त और उदास हो जाता है एवं चारा खाने से इंकार कर देता है। वह कमजोर हो जाता है, छाती क्षेत्र और कोहनी क्षेत्र के पास सूजन के परिणामस्वरूप लंगड़ापन आ जाता है। त्वचा के नीचे आकार में 2.5 सेमी दृढ स्पष्ट गोल पिंड पूरे शरीर में विकसित होते है। विशेष रूप से सिर, गर्दन विभिन्न अंगों शरीर के उदर भागों और थन के आसपास 7 से 15 दिनों के भीतर नोड्यूल्स टूटने लगते है और खून बहने लगता है। इसके परिणामस्वरूप माइयासिस हो सकता है। इस घाव से संक्रमित जानवरों को सांस लेने में कठिनाई देखी जाती  है। जब ये गांठें ठीक हो जाती है तो ये जानवरों के शरीर पर एक स्थायी निशान छोड़ जाती है।

उन्होंने बताया कि आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग संक्रमण से बचाव के लिए किया जा सकता है। तुलती के पत्र एक मुठ्ठी, दालचीन 5 ग्राम , साेंठ पाउडर 5 ग्राम, काली मिर्च 10 नग तथा गुड़ आवश्यक मात्रा में लेकर लड्डू बना लें। यह सामग्री एक खुराक की मात्रा है। खुराक को सुबह शाम लडडू बनाकर खिलाए। आंवला अश्वगंधा, गिलोय एवं मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलाए।

उन्होंने बताया कि आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा औषध व्यवस्था पान के पत्ते 10 नग, काली मिर्च पाउडर 10 नग, ढेलेवाला नमक 10 ग्राम तथा गुड़ की आवश्यक मात्रा की एक खुराक की सामग्री को अच्छी तरह से पीसकर गुड के साथ मिलाकर लड्डू बना लें। पहले तीन दिनों तक संक्रमित पशु को हर 3 घंटे में एक लड्डू खिलाए। संक्रमण होने के 4 से 14 दिनों में मुख से देने वाली औषध व्यवस्था में नीम के पत्ते एक मुठ्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुठ्ठी, लहसुन की कली 10 नग, लौंग 10 नग, काली मिर्च पाउडर 10 नग, पान के पत्ते  5 नग, छोटे प्याज 2 नग, धनिये के पत्ते 15 ग्राम,जीरा 15 ग्राम, हल्दी पाउडर 10 ग्राम तथा गुड़ आवश्यकतानुसार लेकर उपरोक्त सामग्री की एक खुराक बनाएं। इस सामग्री को अच्छी तरह पीसकर गुड़ के साथ लड्डू बना ले। पशु को सुबह, शाम और रात को लड्डू खिलाएं।

उन्होनें बताया कि खुले घाव के लिए स्थानिक उपचार में नीम के पत्ते एक मुठ्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुठ्ठी, मेंहदी के पत्ते एक मुठ्ठी, लहसुन की कली 10 नग तथा हल्दी पाउडर 10 ग्राम, नारियल का तेल 500 ग्राम को पीसकर 500 मिलीलीटर नारियल के तेल में धीरे धीरे पका ले एवं तेल का ठंडा करें। नीम की पत्ती पानी में उबाल कर घाव को साफ करने के बाद पूर्व में बनाया तेल घाव पर लगाएं।

उन्होंने बताया कि लम्पी स्कि्रन रोग से बचाव एवं संक्रमित पशुओं के स्नान (सफाई) की व्यवस्था के अन्तर्गत  पशुओं के स्नान के लिए 25 लीटर पानी में एक मुठ्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एवं 100 ग्राम फिटकरी (अधिकतम) मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। इस घोल से स्नान के 5 मिनट पश्चात सादे पानी से स्नान कराना चाहिए। लम्पी स्किन रोग से बचाव एवं संक्रमित पशुओं के लिए धूपन व्यवस्था के अन्तर्गत संक्रमण रोकने के लिए पशु बाडे में और गायों के बीच गोबर के छाणे, कण्डे अथवा उपलेजलाकर उसमें गुगल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते एव लोबान को डालकर सुबह शाम धुंआ करें।

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