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अस्थमा बहुत ही सामान्य श्वास रोग, इसे गंभीर ना बनाएं - डॉ प्रमोद दाधीच



अजमेर (AJMER MUSKAN)।
विश्वा अस्थमा दिवस के अवसर पर अजयमेरु प्रेस क्लब व मित्तल अस्पताल के संयुक्त तत्वधान में निशुल्क अस्थमा श्वास रोग परामर्श शिविर एवं परिचर्चा का आयोजन वैशाली नगर स्थित पेट्रोल पंप के पीछे अजयमेरु प्रेस क्लब के सभागार में किया गया।


अस्थमा एवं श्वास संबंधित रोगों पर चर्चा करते हुए मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर के सीनियर अस्थमा, टी बी व श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ प्रमोद दाधीच ने  बताया अस्थमा बहुत ही सामान्य श्वास रोग है। व्यक्ति की लापरवाही ही इसे गंभीर रोग बना देती है।  भारत में लगभग 6 प्रतिशत बच्चे और 2 प्रति बड़े अस्थमा से पीड़ित हैं। भारत में क़रीब 38 मिलियन लोगों को अस्थमा है, उनमें से 40 प्रतिशत मरीज़ों का अस्थमा अनियंत्रित है जिस की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है व बार-बार स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिनके गंभीर परिणाम मरीजों को भुगतने पड़ते हैं। अस्थमा या दमा फेफड़ों की क्रॉनिक बीमारी है, यानी की ऐसी बीमारी जो जड़ से नहीं जाती पर उन पर कंट्रोल किया जा सकता है। उन्होंने बताया वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान ने बहुत ही प्रगति की है जिससे अस्थमा और दमा को नियंत्रित रखकर लोगों स्वस्थ जीवन जीने को प्रेरित किया जा सकता है।

इस अवसर पर उन्होंने पावर प्रजेंटेशन के जरिए अस्थमा होने के कारकों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि अस्थमा में श्वास नली कुछ एलर्जिक कारकों से अति उत्तेजित हो जाती है जिससे साँस की नली में सूजन आ जाती है।  सामान्य भाषा में कहा जाए तो साँस की नली सिकुड़ जाती है, नतीजा साँस लेने में दिक़्क़त होने लगती है, और अस्थमा के अन्य लक्षण भी आने लगते हैं।

डॉ दाधीच ने बताया कि प्रारंभिक अवस्था में पहला लक्षण इंफ़्लामेशन या सूजन आना है जिसके कारण एयरवे की झिल्ली मोटी हो जाती हैं और हवा का बहाव कम हो जाता है। दूसरा बदलाव ब्रोंकोकंस्ट्रिक्शन है, इसमें एयरवेज को सहयोग करने वाली मांसपेशियों में सिकुड़न या खिंचाव होने लगता है जिसके कारण एयरवे सिकुड़ जाते हैं और हवा का बहाव कम हो जाता है। तीसरा बदलाव जो देखने को मिलता है वह म्यूकस सिक्रीशन का बढ़ जाना है जिसके कारण सांस की नली जाम हो ज़ाती है और हवा का बहाव बिलकुल कम हो जाता है।  जब भी अस्थमा का कोई मरीज़ किसी एलरजिक कारक के सम्पर्क में आता है तो यह तीनों बदलाव या तो एक साथ आ सकते हैं या अलग अलग आ सकते हैं जिसे अस्थमा का अटैक भी कहते हैं।

अस्थमा के कारक कौन से हैं

डॉ दाधीच ने बताया कि वास्तव में यह कोई नहीं जानता है कि अस्थमा का कारण क्या है, हालांकि कुछ फ़ैक्टर्ज़ और ट्रिगर पता हैं जो अस्थमा और अस्थमेटिक अटैक का कारण बन सकते हैं । इनमें पहला कारण जींस हैं जो माता-पिता से मिलते हैं। माता-पिता को अस्थमा या एलर्जी है तो बच्चों में अस्थमा होने की संभावना 40 से 80 प्रतिशत तक होती है। उन्होंने बताया कि दूसरा कारण एनवायरमेंटल ऐलर्जेंस व ऑक्युपेशनल एलर्जंस होता है। जैसे कि हाउस ड़स्ट, माईट, एनिमल ऐलर्जेंस, पेंट, परफ़्यूमस, धूम्रपान इत्यादि। तीसरा कारण है रेस्पिरेटरी इन्फ़ेक्शन यानी श्वास की नली का इन्फ़ेक्शन होता है। चौथा कारण एक्सरसाइज़, कभी-कभी एक्सरसाइज़ करते हुए या कठोर परिश्रम करते हुए भी अस्थमा का अटैक हो सकता है, इसे एक्सरसाइज़ इंड्यूसड अस्थमा भी कहते है।

डॉ दाधीच ने बताया कि अस्थमा होने का पाँचवा कारण है गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग यानी की इसमें फ़ूड पाइप के निचले हिस्से में ऐसिड भर जाता है और यह ऐसिड नसों को इरिटेट करता है और एयरवे को ह्यपेर सेंसिटिव बना देता है और अस्थमा का कारण बन जाता है । यदि किसी मरीज़ को गर्ड यानी पांचवां अस्थमा है तो उसका डाइग्नोसिस होना बहुत ज़रूरी है ताकि उसका इलाज किया जा सके और मरीज़ को अस्थमा में आराम मिल सके । उन्होंने बताया कि मौसम में बदलाव अन्य वजह से राइनोसाइनोसाइटिस मतलब बार बार ज़ुकाम होने अथवा छींक आना भी अस्थमा का कारण बन सकता है।

डॉ दाधीच ने बताया कि कई बार सरदर्द होने या बुखार आने पर एसप्रीन या नॉन स्टेरोइड एंटी इनफ्लेमेट्री ड्रग्स से भी अस्थमा अटैक हो सकता है । इसके अलावा कुछ आइ ड्राप्स भी अस्थमा होने का कारण बन सकती हैं जो आमतौर पर ग्लूकोमा या काला पानी के इलाज में काम आती हैं कई बार ओबेसीटी या मोटापा भी अस्थमा का कारण बन सकता है । स्ट्रेस या तनाव भी कई बार अस्थमा को ट्रिगर कर सकता है यदि बच्चा प्रीमेच्योर जन्म ले या माँ की उम्र बच्चे को जन्म देते वक्त ज़्यादा हो या फिर प्रेग्नेंसी के समय मां-धूम्रपान करती हो तो भी बच्चे को अस्थमा हो सकता है ।

अस्थमा होने पर क्या है निदान

डॉ दाधीच ने बताया कि श्वांस लेते वक्त सिटी जैसी आवाज़ आने, सीने में जकड़न या भारीपन होने, सूखी अथवा गीली खांसी लम्बे समय से होने एवं शिशुओं में निमोनिया या सांस लेने में दिक़्क़त होने की अवस्था में सर्व प्रथम अपने नजदीकी डॉक्टर से सम्पर्क कर आवश्यक जांच कराई जानी चाहिए। उन्होंने बताया लोग मर्ज टालते हैं उससे मर्ज टलता नहीं बल्कि शरीर में घर बना लेता है। अस्था का निदान यही कि जितना जल्दी हो उसे पहचान लिया जाए और चिकित्सक की सलाह पर उपयुक्त उपचार लिया जाए। उन्होंने सभी को जागरूक करते हुए कहा कि अस्थमा है तो उसे स्वीकार भी करें और उपयुक्त उपचार लें।

इससे पहले क्लब के अनेक सदस्यों और उनके परिवारजन की कम्प्यूटर द्वारा स्पाइरोमीट्री, पीक फ्लो मीटर द्वारा फेफड़ों की जांच, स्मोक चैक मीटर व पल्सआक्सीमीटर द्वारा जांचें निशुल्क की गई। शिविर के प्रारंभ में क्लब अध्यक्ष डॉ रमेश अग्रवाल एवं महासचिव राजेन्द्र गुंजल ने मित्तल हॉस्पिटल के अस्थमा, टी.बी एवं श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ प्रमोद दाधीच तथा हॉस्पिटल के जनसम्पर्क प्रबंधक सन्तोष गुप्ता का स्वागत किया एवं परिचय कराया। 

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