भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है। मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए। नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधेसे कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधिकारी बनाता है। इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है। बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना, नारी ही कर सकती है। अत: नारी सम्माननीय है। आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते व देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो। क्या कारण है इसका? प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-दिन अश्लीलता बढ़ती जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। नारी के सम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए इस पर विचार करना बेहद जरूरी है, साथ ही उसके सम्मान और अस्मिता की रक्षा करना भी जरूरी है। अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।
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