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फेफड़े स्वस्थ रहेंगे, शरीर को रोज दें आधा घंटा - डॉ प्रमोद दाधीच

मित्तल हॉस्पिटल में हुई स्वस्थ फेफड़े-स्वस्थ पर्यावरण पर चर्चा


अजमेर (AJMER MUSKAN)।
स्वस्थ फेफड़े सुखी और निरोगी जीवन का आधार हैं। फेफड़े स्वस्थ रहेंगे पर शरीर को आधा घंटा रोज देना होगा।

पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ प्रमोद दाधीच ने विश्व सी.ओ.पी.डी दिवस के अवसर पर बुधवार को ‘‘स्वस्थ फेफड़े-स्वस्थ पर्यावरण’’ विषय पर परिचर्चा करते हुए यह कहा। परिचर्चा का आयोजन मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर के परिसर में किया गया था। इस दौरान हॉस्पिटल में भर्ती रोगियों के परिवारजनों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। डॉ प्रमोद दाधीच ने क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज(सी.ओ.पी.डी) के बारे में बहुत ही सरल और सहज भाषा में समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसा रोग है जिसमें लम्बे समय से श्वास की नलियों में सूजन आने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी व कार्बन डाईऑक्साइड की अधिकता होने लगती है। उन्होंने बताया कि बहुत से लोग अस्थमा और सी.ओ.पी.डी रोग में अंतर को समझ नहीं पाते। लिहाजा रोग गंभीर हो जाता है और उपचार जटिल व महंगा लगने लगता है। डॉ दाधीच ने कहा कि समस्या जितने जल्द पकड़ में आ जाए छुटकारा पा लेने में ही समझदारी है।

डॉ दाधीच ने बताया कि अस्थमा और सी.ओ.पी.डी दोनों अलग-अलग रोग जरूर है पर इनका इलाज इन्हेल्ड थैरेपी ही है यह बात दीगर है कि उनकी दवाइयां अलग होती हैं। उन्होंने कहा कि इन्हेल्ड बदले जा सकते हैं पर ऐसा चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए। अपनी मर्जी से एक ही इन्हेल्ड लम्बे समय तक काम में लेना भी गलत है तो अपनी मर्जी से बदलते रहना भी। इस मौके पर डॉ दाधीच ने रोगियों के परिवारजनों द्वारा पूछे गए अनेक सवालों के जवाब भी दिए। उन्होंने वेन्टीलेटर का उपयोग कब किया जाता है और किन रोगियों के लिए उसकी उपयोगिता जीवन रक्षक है जैसे सवालों का भी बहुत ही सरल भाषा में प्रतिउत्तर किया।

डॉ दाधीच ने सभी को स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहते हुए शरीर को नित आधा घंटा देने तथा अपने आस-पास का पर्यावरण स्वस्थ बनाए रखने के लिए ऑक्सीजन बढ़ाने वाले पौधे लगाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इससे घर के आसपास का वातावरण शुद्ध होगा और आंखों को हरियाली दिखाई देगी। मन प्रसन्न होगा, काम-काज में दिल लगेगा तो दिमाग से तनाव घटेगा।

उन्होंने कहा कि हमारा शरीर जिन तीन अंगों पर संचालित होता है, जिनमें ब्रेन, हृदय और फेफड़े प्रमुख हैं। फेफड़े का काम एक उलटे पेड़ की तरह होता है जिसकी जड़े ऊपर होती है और शेष तना व शाखाएं, पत्ते नीचे फैले होते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे पेड़ में जड़ें जमीन से पानी पाकर पत्ती-पत्ती तक पहुंचाती है, पेड़ की हर शाखा को हरा-भरा रखती हैं वैसे ही फेफड़े बाहरी स्वस्थ पर्यावरण से ऑक्सीजन एकत्र तक हमारे शरीर के भीतर नीचे तक फैली कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। इस अवसर पर उपस्थित लोगों की ब्रीथो मीटर के द्वारा फेफड़ों की निःशुल्क जांच भी की गई। कार्यक्रम में मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम सहित अन्य चिकित्सक व अधिकारी गण भी उपस्थित थे। परिचर्चा का संयोजन जनसम्पर्क प्रबन्धक सन्तोष कुमार गुप्ता ने किया।

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