अजमेर (AJMER MUSKAN)। तीज-त्यौहार किसी भी धर्म व संस्कृति की पहचान व धरोहर होते हैं। हमारे देश में विभिन्न धर्म व समुदाय के लोग एकजुट होकर रहते हैं।
यहां के लोग सभी धर्मों के त्यौहार एकजुट होकर मनाते हैं..
यूं तो श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त दान करने की परम्परा है ..किंतु आठवें श्राद्ध के दिन सिन्धी समुदाय महालक्ष्मी सगिड़ा मनाते हैं। हर त्यौहार को मनाने के पीछे कोई न कोई प्रथा होती है ।
महालक्ष्मी की कथा बताते हुए पं.राजू महाराज ने बताया कि एक राजा था..उसे किसी ने पीला धागा ( जिसे सगि॒ड़ा कहा जाता है ) दिया था..
राजा ने वह धागा अपनी रानी को दिया और कहा कि इसे बांध देना..रानी ने वह धागा फेंक दिया.. उस धागे को सेविका बानी ने उठाया..और माथे से लगाकर बांध दिया.. रानी ने इस तरह से उसका अनादर किया और बानी ने उसको आदर सहित बांध लिया..
इससे बानी की किस्मत खुल गई वह सेविका से महारानी बन गई..उसके पास सारे धन-वैभव आ गए..वह बहुत सुख से रहने लगी।
इसके बाद तो मानो रानी का भाग्य ही फूट गया..
वह घूमते-घूमते बगीचे में गई तो सारे पेड़-पौधे सूख गए..पास में खड़ी गाय ने दूध देना बंद कर दिया..नदी किनारे गई तो नदी सूख गई..और तो और उस पर हार चुराने का आरोप भी लग गया..तब राजा ने उसको महल से निकाल दिया..
अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए रानी दिन बिता रही थी.. तभी एक साधु को उस पर दया आ गई और वह उसे अपनी कुटिया में ले आए..
एक दिन राजा का कोई सेवक वहां से गुज़रा तो उसने रानी को देखा..परंतु उसकी वेशभूषा की वजह से वह सोचने लगा कि यह तो रानी लग रही है..
उसे दुविधा में देख रानी बोली 'हां तुम सही पहचान रहे हो मैं रानी ही हूं..
उसने जाकर राजा को खबर दी..
तब राजा स्वयं उसे लेने आए परंतु साधु ने कहा अभी आप जाओ..मैं स्वयं इसे भेज दूंगा..
तब साधु ने रानी को दूध और शक्कर दिया..जिसे सिन्धी लोग अक्खा कहते हैं ..
और कहा..जाते समय रास्ते में जो-जो जगह आए उसमें डालती जाना और कभी भी लक्ष्मीजी के सगि॒ड़े का अनादर मत करना..
रानी ने ऐसा ही किया तब क्रमश: बाग हरा-भरा हो गया.. गाय दूध देने लगी..नदी पानी से भरपूर हो गई और गुम हुआ हार भी मिल गया.. इस तरह रानी का भाग्य पुन: जाग उठा। ऐसे ही लक्ष्मीजी अपने सभी भक्तों का भला करके उन्हें धन--धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं..इस प्रकार घर के सभी सदस्यों को 'सगि॒ड़ा' पहना कर अष्टमी को उसे मीठी पूड़ी पर लपेटकर ब्राह्मण के यहां पूजा करके फिर अक्खा डालकर दिया जाता है..
इस दिन तरह-तरह के मीठे पकवान बनाए जाते हैं..जिनका लक्ष्मीजी को भोग लगाकर बांटकर खाया जाता है। इनमें प्रमुख है सतपुड़ो..सयूं..मिठा ग॒च..मिठा चांवर..खीर इस तरह यह त्यौहार संदेश देता है ..कि धन का घमंड कभी नहीं करना चाहिए.. जो भी लक्ष्मीजी का अनादर करता है ..वह रुष्ट होकर चली जाती हैं..
जो नम्रता और आदर से लक्ष्मी जी का आह्वान करता है उनके यहां लक्ष्मी जी सदा निवास करती हैं ।
महालक्ष्मी जी की कथा में सीमा राजू शर्मा, ज्योति रामनानी, नीलम मंघनानी, काजल, कोमल , रानी व अन्य उपस्थित रहे।
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