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त्रुटिहीन, विधिसम्मत एवं गुणवत्तापूर्ण निर्णय लेखन की महती आवश्यकता - राजेश्वर सिंह


दो दिवसीय राज्यस्तरीय निर्णय लेखन कार्यशाला 


अजमेर (AJMER MUSKAN)। 
राजस्व मंडल के अध्यक्ष राजेश्वर सिंह ने कहा कि राजस्व न्यायालयों की गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए पीठासीन अधिकारियों को विधिसम्मत एवं तथ्यात्मक आधार पर निर्णय पारित करने की महती आवश्यकता है।
सिंह अजमेर के राजस्व अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में गुरुवार से राजस्व मंडल की अगुवाई में आरम्भ हुई दो दिवसीय राज्यस्तरीय निर्णय लेखन कार्यशाला के शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे । कार्यशाला में राज्य के संभाग एवं जिला मुख्यालयों के अतिरिक्त संभागीय आयुक्त राजस्व अधिकारी एवं प्रबंध अधिकारी भाग ले रहे हैं।
राजस्व मंडल अध्यक्ष ने कहा कि राजस्व न्यायालयों में निर्णयों की गुणवत्ता की स्थिति में सुधार के लिए जिम्मेदार पीठासीन अधिकारियों को चिंतन करने की महती आवश्यकता है। उन्हें चाहिए कि निर्णय पूर्ण स्पष्टता के साथ साथ तथ्यात्मकता,जवाब दावा, अधिवक्ताओं की दलील व नज़ीर आदि को ध्यान में रखकर पूर्ण विश्लेषण एवम् निष्कर्ष के आधार पर लिखे जाएं। सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय एवम् राजस्व मण्डल के निर्णयों की नज़ीरों का पूर्ण सम्मान होना चाहिए। ऐसी नज़ीरों के विरुद्ध दिए गए निर्णय राजस्व न्याय प्रणालीकी छवि, प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता  पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

लोकहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दें 

सिंह ने कहा कि राजस्व न्यायालयों में लोकहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। न्याय के लिए लंबे समय से प्रतीक्षारत पक्षकारगण को त्वरित सुगम एवं निष्पक्ष होकर न्याय दिलाना राजस्व न्यायालयों का मुख्य ध्येय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालयों में पेशकार वर्ग पर निर्णय लेखन हेतु निर्भरता अत्यंत गंभीर विषय है, पीठासीन अधिकारी वर्ग को इससे बचते हुए स्वयं निर्णय लेखन की व्यवस्था लागू करनी होगी तभी गुणवत्तापूर्ण एवं उचित निर्णय की कल्पना की जा सकती है।

बदनीयती से किये निर्णयों पर हो अनुशासनात्मक कार्रवाई 

सिंह ने कहा कि देश की व्यवस्था पूर्णरूपेण विधि एवं न्याय पर आधारित है । बदनीयती एवं किसी भी स्तर से प्रभावित होकर किए गए निर्णय के लिए दोषी पीठासीन अधिकारी के विरुद्ध वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई के प्रकरण सरकार को भिजवाए जाने चाहिए। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हुए न्यायालय की प्रतिष्ठा एवं गौरव गरिमा के अनुरूप कार्य करने की बात कही।

कार्य व्यवहार में श्रेष्ठता व अनुशासन का रखें ध्यान 

राजेश्वर सिंह ने कहा कि राजस्व न्यायालय व्यवस्था  लोक कल्याण का कार्य है इसमें हमें सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर विधिक पक्ष को ध्यान में रखकर कार्य करने की आवश्यकता है। श्रेष्ठ व्यवहार एवम अनुशासित होकर दायित्व निभाने से ही पद का गौरव बढ़ता है।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राजस्व मंडल के निबंधक बाबूलाल मीणा ने कहा कि राजस्व वादों में सर्वाधिक प्रभावित कृषक वर्ग है जो राष्ट्र का अन्नदाता है। ऐसे में हमें अत्यंत गंभीर एवं संवेदनशीलता से राजस्व निर्णयों को पारित करने की जरूरत है। तभी इस वर्ग को सही मायने में न्याय मिल पायेगा।
कार्यशाला के आरंभ में राजस्व अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक आशुतोष गुप्ता ने कहा कि राज्य में विविध स्तरीय राजस्व न्यायालयों में करीब 5 लाख राजस्व प्रकरण लंबित हैं जिनमें से तीन लाख उपखंड अधिकारी स्तर पर हैं। उन्होंने कहा कि न्याय में देरी से न्याय का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। राजस्व न्यायालयों को त्रुटिपूर्ण निर्णय की स्थिति से बचने के लिए प्रभावी प्रयासों की जरूरत है।कार्यक्रम का संयोजन आरआरटीआई उपनिदेशक चेतन त्रिपाठी ने किया।
कार्यक्रम में राजस्व मंडल के अतिरिक्त निबंधक भंवर सिंह सांदू, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त एलएन मंत्री उदयपुर, अजीजुल हसन गौरी बीकानेर, बाबूलाल गोयल जयपुर, गजेंद्र सिंह राठौड़ अजमेर, अनुराग भार्गव कोटा, राजस्व अपील अधिकारियों में अलका विश्नोई, अरविंद जाखड़, बृजमोहन नोगिया, करतार सिंह पूनिया, मेघना चौधरी, भगवंती जेठवानी, राजवीर सिंह चौधरी, नखत दान बारहठ, कमला अलारिया, सुभाष महरिया, श्याम सिंह शेखावत व हरिराम मीणा, भू प्रबंध अधिकारियों में महावीर खराड़ी, एम एल चौहान, परशुराम धानका आदि मौजूद रहे।
तकनीकी सत्र
कार्यशाला में राजस्व मंडल के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने निर्णय लेखन के संदर्भ में जानकारी देते हुए कानूनी पक्षों पर विस्तार से चर्चा की इसी प्रकार राजस्व मंडल के सदस्य हरिशंकर गोयल ने निर्णय लेखन की विविधता एवं विविध नियमों व अधिनियमों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

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