पाक पर भारत की फतह के स्वर्णिम वर्ष में अजमेरवासियों के लिए गौरान्वित होने का होगा पल
अजमेर (AJMER MUSKAN)। पाकिस्तान पर भारत की जीत के पचास साल पूरे होने पर मनाए जा रहे स्वर्णिम विजय वर्ष के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 16 दिसम्बर 2020 को राष्ट्रीय विजय स्मारक, नई दिल्ली से प्रज्वलित कर देश के चारों दिशाओं में भेजी गई चार विजय मशालों में से एक शनिवार को अजमेर के वैशाली नगर स्थित साकेत काॅलोनी निवासी वीर चक्र से सम्मानित रिटायर्ड लेफ्निेंट कर्नल नंद दुलारे माथुर के घर लाई जाएगी। यहां सुबह 9 बजे आयोज्य गरिमामयी कार्यक्रम में अजमेर स्थित तोपखाने की मीडियम रेजिमेंट के अधिकारियों और जवानों द्वारा विजय मशाल लेफ्निेंट कर्नल एन डी माथुर के हाथों में सौंप कर उन्हें सम्मानित किया जाएगा। इस मौके पर माथुर के घर आंगन की माटी का कलश भर कर ससम्मान नई दिल्ली भेजा जाएगा।
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एन डी माथुर के पुत्र अजमेर के जाने माने बाल रोग चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ प्रशांत माथुर एवं डाॅ हिमीशा नाग दम्पति ने अजमेर वासियों को गौरान्वित महसूस कराने वाली इस सूचना को साझा करते हुए बताया कि विजय मशाल उनके घर लाए जाने की खुशखबर अजमेर सैनिक छावनी के अधिकारियों ने शुक्रवार को उनके निवास पर पहुंच कर दी। डाॅ प्रशांत माथुर दम्पति ने कहा कि 1971 में भारत की पाकिस्तान पर जीत की खुशी का अहसास उन्हें 50वें वर्ष में पचास हजार गुना बड़ा सा महसूस हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस सूचना से समूची काॅलोनी के लोग और मित्र, परिवारजन अत्यन्त ही उत्साहित हैं एवं गर्व की अनुभूति कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि स्वर्णिम विजय मशाल को अजमेर सैनिक छावनी पर पहुंच गई जहां उसका गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
राष्ट्रपति वी वी गिरी ने दिया था वीर चक्र..............
76 वर्षीय रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एन डी माथुर ने बताया कि उन्हें 15 दिसम्बर 1971 में वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें नई दिल्ली, राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी.गिरी के हाथों मिला। तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी समारोह में मौजूद थी।
मेजर के रूप में एक कंपनी की संभाल रखी थी कमान............
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एन डी माथुर ने अपनी यादें साझे करते हुए बताया कि अजमेर में शिक्षा अर्जन के साथ ही उनका फौज में नौकरी करने का मन बनने लगा था। वर्ष 1963 में उन्होंने नेशनल डिफेन्स एकेडमी (एनडीए) में दाखिला पा लिया। यही उनकी अपना सपना साकार होने की पहली सफलता लगी। लेफ्निेंट कर्नल माथुर ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के समय तो वे एनडीए खड़कवासला में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। उन्हें मलाल रहा कि वे इस युद्ध का हिस्सा नहीं बन सके। दिसम्बर 1966 में उन्हें कमीशन मिला।
1971 के युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान में थे तैनात............
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एन डी माथुर ने बताया कि भारत पाक युद्ध 1971 में वे 22 राजपूत बटालियन में एक कंपनी को कमान कर रहे थे और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में तैनात थे। उन्होंने बताया उनकी बटालियन को शत्रु की लाइन के पीछे जाकर रोड ब्लाॅक लगाने का टास्क दिया गया था। इन्होंने 15 दिसम्बर 1971 की सुबह रोड ब्लाक लगा दिया। दोपहर को दुश्मन ने 2 से 3 दफा रोड ब्लाॅक तोड़कर भाग निकलने की कोशिश की मगर उसके हमलों को विफल कर दिया गया। शाम को दुश्मन ने भारी तादाद में तोपखाना, मोर्टर एंटी टैंकगन, मशीनगन फायर आदि की मदद से उनपर हमला बोल दिया।
वे भी अपनी कंपनी के जवानों पर नियंत्रण करते हुए और उन्हें जोश दिलाकर दोगुने जोश से दुश्मन पर हमला कर दुश्मन को मार गिराकर बर्बाद करने के लिए प्रेरित करते रहे। कंपनी के जवानों ने भारी और सटीक फायर करके दुश्मन को बड़ा नुकसान पहुंचाया। भीषण और बहुत घमासान युद्ध हुआ। दुश्मन के काफी सैनिक मारे गए। उसकी कमर टूट गई। पाकिस्तानियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। जिन पाकिस्तानियों ने आत्मसमर्पण किया उनमें 14 अफसर, 9 जे सीओ और 327 सैनिक शामिल थे। भारी मात्रा में गोला बारूद, हथियार और राशन जप्त किया गया। इस युद्ध में पाकिस्तान के 81 सैनिक और अधिकारी मारे जाना तथा 17 घायल होना रिपोर्ट किए गए। इस युद्ध के उपरांत ही उन्हें यानी मेजर नन्द दुलारे माथुर को वीर चक्र प्रदान किया गया।
यहां आपको बता दें कि रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल एन डी माथुर के पिता स्वर्गीय सी एल माथुर अजमेर के जाने माने स्वतंत्र पत्रकार थे। अंग्रेजों से लोहा लेने और अपने लेखन से आजादी की लड़ाई में मजबूती से योगदान देने की बहादुरी उनमें रही होगी तो उनके पुत्र का देशभक्ति से भरा होना तो बनता ही था। ऐसे बहादुर, शूरवीर को कोटि कोटि सलाम।
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