अजमेर (AJMER MUSKAN)। विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा स्थानीय महिला कारागृह में विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन कर महिला सुरक्षा एवं बंदियों के विधिक अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान की गई।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव रामपाल जाट ने बताया कि महिला कारागृह में बंद कैदियों को उनके अधिकारों तथा महिला सुरक्षा के संबंध में जानकारी प्रदान करने के लिए विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। बंदियों को उनके अधिकारों जैसे प्रत्येक जेल में लीगल एड क्लीनिक की सुविधा, पोषण युक्त भोजन प्राप्त करना, उचित त्वरित तथा नियमित चिकित्सा, आवास व्यवस्था एवं बिस्तर व्यवस्था, पुस्तकालय व्यवस्था, विचाराधीन बंदियों को सप्ताह में एक बार एवं दण्डित बंदियों को 15 दिवस में एक बार परिजनों एवं मित्रों से मुलाकात की सुविधा, पैरोल की जानकारी, अमानवीय व्यवहार से संरक्षण, जेल में बंदी कैदियों के सम्बन्ध में अपील-अर्जियां एवं निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने के अधिकारों के बारे में जानकारी दी गई।
उन्होंने बताया कि इसी क्रम में केन्द्रीय कारागृह अजमेर के चिकित्सक के.के. शर्मा के अनुसार कुछ बंदी मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकते हैं। इस प्रकार के बंदियों की पूर्व की मानसिक स्थिति की रिपोर्ट जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने तलब की है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 330 से धारा 339 के अन्तर्गत ऎसे बंदियों के विरूद्ध अन्वेषण व विचारण की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसके अनुसार अन्वेषण या विचारण के लम्बित रहने तक विकृत चित्त व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है। जांच या विचारण को तब तक चालू नहीं किया जा सकता, जब तक कि वे न्यायालय की प्रक्रिया को समझने में असमर्थ हैं। मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष अभियुक्त केे हाजिर होने पर उनकी मानसिक स्थिति की मनोचिकित्सक से जांच करवायी जाएगी। जब यह प्रतीत हो कि अभियुक्त स्वस्थ चित्त है तो उसके विरूद्ध विचारण पुनः प्रारम्भ की जा सकती है। चित्त-विकृति के आधार पर दोषमुक्ति का निर्णय पारित किया जा सकता है। यदि अभियुक्त अपराध करने के समय इस प्रकार की विकृत्ति से ग्रसित पाया जाए। इस आधार पर दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का सुरक्षित अभिरक्षा में निरूद्ध किए जाने के प्रावधान भी हैं जिससे उसका उपचार सुनिश्चित हो सके। जहां यह रिपोर्ट की जाती है कि पागल बंदी अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ होने की रिपोर्ट किए जाने पर उसके स्वस्थचित्त होने तक रोक दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि विधि से संघर्षरत बालकों के अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी गई। प्रत्येक बालक को शिक्षा, भोजन, आवास का अधिकार है। बालक का परिवीक्षा अधिकारी की देखरेख में जमानत पर रिहा किया जा सकता है। बालक को पकड़े जाने पर विशेष किशोर पुलिस इकाई के समक्ष लाया जाएगा। परिवीक्षा अधिकारी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को सूचित करेगा। बालक के क्रम में किसी भी प्रकार का प्रकाशन निषेध है। बालकों की देखरेख एवं संरक्षण अधिनियम, 2011 के अनुसार सात वर्ष से कम अपराध के लिये एफआईआर दर्ज करा दी है तो बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
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