डॉ. लाल थदानी |
स्वास्थ्य का अर्थ ये नहीं है कि शरीर में किसी बीमारी के कोई लक्षण आएं , दवाई ली और आप ठीक हो गए । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को बहुत ही अच्छी तरीके से परिभाषित किया है कि स्वास्थ्य का मतलब है व्यक्ति शारीरिक , मानसिक आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ हो ।
पिछले सवा साल से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से हतप्रभ है । राजनीति नित नए उपाय और कानून लागू कर रही है । प्रशासन प्यार से, डंडे के जोर से स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने में लगा है । डॉक्टर, नर्स सीमित संसाधनों के बावजूद समर्पित होकर, खुद को जान जोखिम में डालकर मरीजों की जान बचाने में लगे हैं। प्रकृति के साथ छेड़खानी क्या की कुदरती हवा जहरीली हो गई और कृत्रिम श्वास् यंत्रों के लिए हम हजारों लाखों रुपए खर्च करने के लिए तैयार हैं मगर आज अस्पतालों में न बेड हैं न ऑक्सीजन और न वेंटिलेटर । भागम भाग भरी जिंदगी और द्वेष ऊहापोह क्लेश में सब अपने आप से दूर हो गए । यहां से जन्म हुआ नित नई बीमारियां महामारियों । शरीर से पहले मन बीमार हुआ । सामाजिक रिश्तों में प्रदूषण बढ़ता गया , रिश्तों में खटास क्या हुई अपनेपन और दो मीठे बोलों के लिए लोग तरस गए ।
नया रोग अपनी प्रकृति में अपरिचित होता है और इसके पूर्व और दूरगामी परिणामों के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता है. इस बात को लेकर कोई शक नहीं रह गया है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बुनियादी तौर पर और अभिन्न रूप से आपस में जुड़े हुए हैं। संक्रमणकारी महामारियां आम लोगों में चिंता और घबराहट को बड़े पैमाने पर बढ़ाती हैं. इसमें डर, अवसाद, तनाव और मनोविकृति और पैनिक अटैक शामिल हैं।
संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेशन करते हुए इलाज पा रहे लोगों को संभवतः सामाजिक एकांतवास का भी सामना करना पड़ा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्हें अलग-थलग रखा गया था. मसाला समाचारों और गूगल से मिली भ्रामक समाचारों ने असुरक्षा ,भय, घबराइट, भविष्य की अनिश्चिता को जन्म दिया है । इंटरनेट के युग में हम ज्यादातर सूचनाएं ऑनलाइन हासिल करते हैं और इस कारण से लोगों में व्यवहारवादी परिवर्तन पाया गया है ।
समाचार माध्यमों के आलेखों और सोशल मीडिया पोस्ट्स को सनसनीखेज बनाने और गलत जानकारी का प्रसार करने की प्रवृत्ति मोबाइल मसखरों के लिए जैसे खेल हो गया । मजाक और झूठ इतना वायरल हुआ कि सच लगने लगा। आम जन में डर और भगदड़ की स्थिति बनी है । लोग नींद से डरने लगे कि क्या पता अगली सुबह नसीब हो न हो। मगर कोरोना ने सबक भी दिया ।
लोग सामाजिक और पारिवारिक गठबंधन में दिखे । प्रकृति को मुस्कराते देखा । आकाश वसुंधरा को स्वाभाविक निखरे हुए रूप में देखा । सागर की हिलोरें संगीत मय हुई तो तितलियां पंछी पेड़ पौधे गुनगुनाते नज़र आए । लोग अध्यात्म, प्राकृतिक योग, जड़ी बूटियों के प्राचीन इलाज़ की तरफ उन्मुख हुए ।
अंत में एक सूत्र सबको देना चाहूंगा अगर अपने आप से परिवार से है तुम्हें सच्चा प्यारतो अपनाना पड़ेगा जीवन में आचार , विचार, व्यवहार, योग, प्राणायाम, संतुलित आहार ,और सद विचार ।
डॉ. लाल थदानी
वरिष्ठ जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ 8005529714
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