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पत्थरों का जवाब फूलों से, हम हैं जिंदा इन्ही उसूलों से.... अजमेर में मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन

गणतंत्र दिवस की पूर्व संघ्या पर देशभक्ति मुशायरा व कवी सम्मेलन का आयोजन
गणतंत्र दिवस की पूर्व संघ्या पर देशभक्ति मुशायरा व कवी सम्मेलन का आयोजन

अजमेर (Ajmer Muskan)।
  गरीब नवाज वेलफेयर सोसायटी अजमेर की ओर गणतंत्र दिवस की पूर्व संघ्या पर देशभक्ति मुशायरा व कवी सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसे श्रोताओं ने मंत्र मुग्ध होकर सुना। अज़मेर के पन्नी ग्राम चौक सैयदना पैलेस में आयोजित इस कार्यक्रम में शाइरों और कवियों ने गंगा जमुनी तहज़ीब की नुमाइंदगी करते हुए रचनाएं पेश की। 

कार्यक्रम के संयोजक मोहम्मद नज़ीर क़ादरी ने बताया कि मुशायरे की सदारत देश के मशहूर शाइर उस्ताद  सैयद मन्नान राही साहब ने की।  मुशायरे का संचालन सैयद ईमरान ख़्वाजगनी ऐजाजी ने किया। उन्होंने  अहमद रईस अजमेरी का शेर पढ़ते हुए मुशायरे का आगाज़ किया "पत्थरो का जवाब फूलों से, हम हैं जिंदा इन्ही उसूलों से".... मुशायरे में सबसे पहले हास्य कवि  हबीब फ़रवट ने रचना पढ़ी "बात इतनी सी याद रख लेना, इस तिरंगे की लाज रख लेना" एक गीत भी उन्होंने पेश किया "मोदी जी का तराना हैं, अब दोस्तो ! जान सब की बचाना हैं अब दोस्तों.... शैख़ मोहम्मद इज़हार ने कौमी एकता पर शेर पड़े "हो वो हिंदु या मुसलमां नेक होना चाहिए, बात जब भी हो वतन की एक होना चाहिए"... "राम के नानक के हों या चिश्तिया गुलज़ार के, फूल कितने भी हों खुशबू एक होना चाहिए".... प्रस्तुत कर समां बाध दिया।

शायर सैयद रब नवाज़ जाफ़री ने अपना कलाम पेश किया "सदा आपस मे रहना प्यार से इस्लाम कहते हैं, जो मानवता सिखाता हैं उसे कुरान कहते हैं".... "लड़ाना हिन्दू मुस्लिम को सियासत गोरो वाली हैं, जो ऐसे राजनेता हैं उन्हें शैतान कहते हैं".... गीतकार राजेश कुमार भटनागर ने कविता पड़ी "कर्ज माटी कुछ इस तरह चुका दूँ मैं, वतन की शान में ये अपना सिर कटा दूँ मैं".... मुशायरे के नाज़िम सैयद ईमरान ऐजाजी ने अपने कलाम पेश किए "ये कत्लों खून ये दहशतगर्दी ये जुल्मो सितम, ऐसे जालिमो को अब सूली पर चढ़ाना होगा".... देरे ख़्वाजा पर है अमनो मोहब्बत का चलन, सारी दुनिया को ये पैगाम सुनाना होगा".... देश के मशहूर शाइर सुरेद्र चतुर्वेदी ने "इश्क़ का यूँ अफ़साना चलता रहता है" सहरा में दीवाना चलता रहता है"..."मन्दिर मस्जिद खो जाते है गलियों में, सड़कों पर मयख़ाना चलता रहता है"...."कहाँ ज़िन्दगी जी पाती है ये दुनिया, खाना और कमाना चलता रहता है"... प्रस्तुत कर खूब दाद बटोरी।

नाजीमुदिन नाज़िम अजमेरी ने अपने कलाम पढ़े। "मैं अपनी प्यास लिए दूर तक चला आया, सुना है अब मुझे दरिया तलाश करता हैं".... उस्ताद-ए-मोहतरम मन्नान राही ने  वतन की शान में कई जानदार क़तों से अपनी बात कही। "मुख़ालिफ़ों से कहो इस तरफ नज़र न करे, हम अपने दिल को भी हिन्दुतान रखते हैं".... उनके इस शेर पर लोगों की बहुत दाद मिली। "उजाले  बाटने आया था सूरज, मगर ये काले बादल छा रहे हैं"..."जुनू का खैरमक़दम हो रहा हैं, हर जानिब से पथर आ रहे हैं".... नाजीमुदिन नाज़िम अजमेरी ने मैं अपनी प्यास लिए दूर तक चला आया, सुना है अब मुझे दरिया तलाश करता हैं..., मन्नान राही ने मुख़ालिफ़ों से कहो इस तरफ नज़र न करे ,हम अपने दिल में भी हिन्दुतान रखते हैं..., उजाले बाटने आया था सूरज, मगर ये काले बादल छा रहे हैं, जुनू का खैरमक़दम हो रहा हैं ,हर जानिब से पथर आ रहे हैं.... सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत मे सोसायटी के अध्य्क्ष दिलीप सिंह राठौड़ ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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