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ग़ालिब की शायरी सर्वकालिक है और आज भी प्रासंगिक


पृथ्वीराज फाउन्डेशन की ओर से  ग़ालिब की जयंती पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन 

अजमेर (Ajmer muskan) । चलिए, अल्फ़ाज़ों का ताना बाना-बुना जाए, ग़ालिब ही कहा जाए ग़ालिब ही सुना जाए। ग़ालिब भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े शायर थे। वे राजनीतिक शायर नहीं थे, लेकिन समय और समाज पर उनकी टिप्पणी मिल जाती है। उनके बहुतेरे शेर तो कोटेशन की तरह इस्तेमाल होते हैं। उनका अंदाज-ए-बयां ही ऐसा था जो अपने पूर्ववर्ती और परवर्ती शायरों से अलग करता है। इस कारण उनकी शायरी, कलाम, शेर को किसी समय के ताले में बंद करना नामुमकिन है। 

ये विचार निकल कर आये रविवार को पृथ्वीराज फाउन्डेशन के तत्वावधान में  उर्दू फ़ारसी अदब के महान् शायर मिर्जा असद उल्लाह बेग खान ग़ालिब की 223वीं जयंती पर आयोजित  पर ऑनलाइन गोष्ठी के दौरान। 

इस अवसर पर लेखिका एवं फाउन्डेशन की अध्यक्ष डॉ. पूनम पांडे ने कहा कि आज ही के दिन 223 साल पहले 27 दिसंबर 1797 को आगरा में  मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश हुई। दुनिया मे उनकी पहचान मुग़ल दरबार के शाही मुलाज़िम की तरह नही बल्कि एक महान शायर के रूप में है। मिर्ज़ा ग़ालिब ने ज़्यादातर शेर और ग़ज़ले इश्क़ और समाज के ताने बाने के इर्द गिर्द लिखा लेकिन हुक़ूमत के खिलाफ़ ज़्यादा नही लिखा, चाहे मुग़ल दरबार मे हो या अंग्रेजों के यहां पेंशन पर। लेकिन उनकी लिखी शायरी और ग़ज़लों में जितनी गहराई थी उस तह तक पहुच पाना आज के शायरों के बस की बात नही। अपनी ज़िंदगी मे हुए गुनाह को वो खुले आम क़ुबूल करते थे, क़ाबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' शर्म तुम को मगर नहीं आती। 

अनिल कुमार जैन ने कहा कि जब भी उर्दू शायरी की बात होती है, मिर्ज़ा असदुउल्लाह खां ग़ालिब का नाम बरबस होठों पर आ जाता है। कई लोगो का शेर, शायरी से जुड़ाव ग़ालिब की शायरी सुनने से ही हुआ और जब अर्थ समझने आने लगे तो लोग निश्चित ही ग़ालिब साहेब के मुरीद हो जाते है। ग़ालिब की शायरी सर्वकालिक है और आज भी प्रासंगिक है। 

संजय शर्मा ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि अदब में जहाँ ग़ालिब को पढ़ा पढाया जाता है वहाँ उनकी शेरो शायरी से ज्यादा महत्व उनके लिखे पत्रों को दिया जाता है, अर्थात ग़ालिब को समझना हो तो  खुतूत ए ग़ालिब पढ़ने चाहये ।  

संदीप पांडे ने ग़ालिब के शेर, मै नादान था जो वफा को तलाशता रहा गालिब, 

यह ना सोचा कि अपनी सांस भी एक दिन बेवफा हो जाएगी।  बे वजह नही रोता कोई इश्क मे गालिब जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रुलाता जरूर है, सुनाते हुए कहा कि ऐसे महान शायर को सलाम जो आज दो सौ तेइस के होकर भी जवां हैं जहां में।   

पृथ्वीराज फाउन्डेशन के सचिव दीपक शर्मा ने कहा कि पिछले नौ वर्ष से अजमेर शहर निरंतर अजीम शायर मिर्जा गालिब का स्मरण करता आ रहा है। उन्होंने कहा कि गालिब ने लीक से हटकर जीवन जिया और हर संवेदना को अपनी शायरी मे कह दिया। उन्होंने कहा कि ग़ालिब ने दर्द, पीड़ा, प्यार, मोहब्बत और फकीरी आदि सभी को आत्मसात कर लिया था और उसके नकारात्मक पहलू को भी जीवन में खूब एन्जॉय किया। 

संजय कुमार सेठी ने मिर्जा गालिब और उनकी जीवन यात्रा से जुड़े कुछ अनूठे प्रसंग साझा करते हुए आभार प्रदर्शित किया।

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