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गेंहूँ की फसल में करें रोगोपचार


अजमेर (Ajmer Muskan)।
जिले में रबी की प्रमुख फसल गेंहूँ पर लगने वाले रोगों के उपचार के लिए कृषि विभाग द्वारा सलाह दी गई है।

कृषि तकनीकी केन्द्र तबीजी के उपनिदेशक ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि गेहूँ रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल है। अनाज के साथ-साथ इसका भूसा भी पशु आहार के रुप में उपयोगी हैं। गेहूँ की अधिक पैदावार के लिए बलुई-दोमट, अच्छी उर्वरा व जल संधारण क्षमता युक्त मिट्टी वाले सिंचित क्षेत्र उपयुक्त हैं। फसलों में उत्पादन में बढोत्तरी हेतु उन्नत शष्य क्रियाओं के साथ-साथ आवश्यक है कि फसलों में रोगों का प्रकोप ना हो। गेंहूँ की फसल में कई हानिकारक रोगों का प्रकोप होता हैं। रोगों से बचाव के लिए बीजोपचार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए कृषि जलवायवीय जोन 3 ए (जयपुर, अजमेर, टोंक व दौसा जिले) के सभी कृषकों को सलाह दी जाती हैं कि गेंहूँ की फसल को रोगों से बचाने हेतु बीजोपचार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों का विभागीय सिफारिश अनुसार प्रयोग करें। बीजोपचार व छिड़काव करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहने।

1. अनावृत कण्डवा रोग की पहचान बालियों बनने के समय ही हो पाती है। रोगी पौधे की बालियों में दाने नही बनते हैं बल्कि दानों के स्थान पर काले रंग का चुर्ण भर जाता हैं। पत्ती कण्डवा रोग के कारण रोगी पौधे की पत्तियां अधिक लम्बी, मुड़ी हुई तथा स्लेटी रंग की दिखाई देती हैं। जिनके टूटने पर काले रंग का पाउडर निकलता हैं। ऎसे पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।

इस रोग के नियंत्रण के उपाय - बीज को 2 ग्राम कार्बोक्सिन या कार्बेण्डाजिम या टेबुकोनाजोल 1.25 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित कर बोवें। खड़ी फसल में रोग दिखाई देते ही रोग ग्रस्त बालियों वाले पौधे को उखाड़कर जला देवें ताकि रोग का अधिक फैलाव ना हो।

2. मोल्या रोग से फसल में 60 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता हैं। रोगग्रस्त पौधे कमजोर, छोटे व पीले पड़ जाते हैं तथा जड़े गुच्छेनुमा हो जाती हैं। पौधों में फुटान कम एवं बालियों का आकार छोटा रह जाता हैं। पौधों की जड़ों पर जनवरी-फरवरी माह में यूरिया के छोटे दानें के समान सफेद सिस्ट देखी जा सकती हैं।

इस रोग के नियंत्रण के उपाय - बुवाई हेतु रोग रोधी किस्म राज. मोल्या रोधक-1 का प्रयोग करें। जिन खेतों में मोल्या रोग का प्रकोप है वहाँ दो-तीन साल तक जौ व गेहूँ की फसल ना बोकर चना, सरसों, मैथी, गाजर या सब्जी की फसल बोवें तथा बुवाई से पूर्व 45 किलो कार्बोफ्यूरॉन 3 जी प्रति हैक्टेयर की दर से 90 किलो यूरिया के साथ डाले। जैविक गेंहूँ उत्पादन हेतु 5-10 क्विंटल/हैक्टेयर पीसी हुई नीम की खली बुवाई से पूर्व डाले।

3. ईयर कोकल एवं टुण्डू रोग के कारण पौधे छोटे रह जाते हैं। दानों की जगह कोकल बन जाते हैं जिनमें कृमि के कई हजार अण्डे होते हैं। रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां, तना तथा बालियॉ मुड़ जाती हैं। ईयर कोकल के साथ टुण्डू रोग में पत्तियों व बालियों में पीले रंग का गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता हैं।

इस रोग के नियंत्रण के उपाय - बीज को नमक के 20 प्रतिशत पानी के घोल से उपचारित कर साफ पानी से धोकर छाया में सुखाने के उपरान्त बोवें तथा ऊपर तैरते हुए कचरे को बाहर निकाल कर जला देवें। जिन खेतों में इस रोग का प्रकोप है, वहाँ अगले कुछ साल तक गेहूँ की फसल ना बोवें।

4. रोली रोग राजस्थान में पीली रोली रोग का प्रकोप ज्यादा होता हैं। पीली रोली रोग में पत्तियों पर पीले रंग के फफोले सीधी रेखीय पंक्तियों में बनते हैं। फिर इनसे पीला पाउडर झड़ता हैं। इस कारण पीली रोली रोग को धारीदार रोली के नाम से भी जाना जाता हैं।

इस रोग के नियंत्रण के उपाय - बुवाई हेतु रोग रोधी किस्म राज. 1482, राज. 3077, राज. 3765, राज. 3777, राज. 4037, डी.बी.डब्लू 17, राज. 4083, राज. 4120, राज. 4079, पी.बी.डब्लू. 175, राज. 4238 तथा डब्ल्यू.एच. 1080 का प्रयोग करें। रोग से बचाने हेतु सुरक्षात्मक उपाय के रुप में 25 किलो गन्धक चूर्ण का प्रति हैक्टयेर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार सुबह या शाम के समय भुरकाव करें या मैन्कोजेब 2 किलों का प्रति हैक्टेेयर की दर से छिड़काव करें।

5. करनाल बंट रोग की पहचान बालियों में दाना बनने के समय ही हो पाती है। पौधों की बाली के सभी दानों में संक्रमण नहीं होता है। केवल कुछ दाने ही आंशिक या पूर्ण रूप से काले पड जाते है। इसलिए इसे आंशिक बंट के नाम से भी जाना जाता है। अधिक संक्रमण की अवस्था में पूरा दाना खोखला हो जाता है। केवल बाहरी परत ही शेष रह जाती है, जिसको दबाने पर काला चूर्ण झडता है तथा इनमें ट्राईमिथाइल अमीन रसायन के कारण सडी हुई मछली जैसी दुर्गंध आती है।

इस रोग के नियंत्रण के उपाय - बुवाई हेतु रोग रोधी किस्म राज. 1482, राज. 3777, डी.बी.डब्लू. 17, तथा राज. 4238 का प्रयोग करें। खड़ी फसल को रोग से बचाने हेतु बाली आने वाली अवस्था एवं 10 दिन बाद 0.1 प्रतिशत प्रोपीकोनाजोल घोल का छिड़काव करें।

6. झुलसा व पत्ती धब्बा रोग के शुरुआत में निचली पत्तियों पर छोटे व अण्डाकार धब्बे बनते हैं जो बाद में बड़े होकर अनियमित आकार के व काले-भूरे रंग के हो जाते हैं। जिनके चारों ओर पीले रंग की परिधी पाई जाती हैं। रोग की उग्र अवस्था में पत्तियां सिरों से सूखने लगती हैं।

इस रोग से बचाव हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15 दिन के अन्तराल पर जाइनेब 2.5 किलो या मैन्कोजेब 2 किलो या कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 3 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर 3-4 बार छिड़काव करें।

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