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अजमेर मित्तल हाॅस्पिटल में खोली 4 साल की बच्ची के खाने की नली




कुपोषित मान कर बच्ची का 2 साल से होता रहा था इलाज


अजमेर (Ajmer Muskan)
। पूनम नाम की मात्र चार साल की साढ़े पांच किलो वजनी एक मासूम बच्ची का कुपोषित की श्रेणी में दो साल से प्रदेश के कई अस्पतालों में इलाज होता रहा जबकि बच्ची के खाने की नली में सिकुड़न थी। मित्तल हाॅस्पिटल के गेस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ मनोज कुमार ने जब बच्ची को पहली बार जांचा तो वे भी यह जानकर हैरत में रह गए कि बच्ची जीवित किस आधार पर है! उसके खाने की नली का मुंह वैसा खुला हुआ नहीं है जैसा अमुमन होना चाहिए था, शेष नली भी सिकुड़ी हुई थी। डाॅक्टर को बच्ची के खाने की नली की शत प्रतिशत सिकुड़न दूर करने के लिए उसे हर सात दिन के अंतराल से बुलाकर आहिस्ता आहिस्ता खोलने के प्रयास करने पड़े। डाॅ मनोज कुमार के अनुसार उसके खाने की नली को पूरी तरह खोलने में खासी मेहनत जरूर हुई, आखिर उन्हें सफलता मिल गई। मित्तल हाॅस्पिटल के एण्डोस्कोपिक टेक्नीशियन राम किशोर चौधरी और मुबारक हाशमी का इसमें सराहनीय योगदान रहा। बच्ची अब ठीक से खाना पीना कर रही है और उसकी सेहत में बदलाव दिखने लगा है। उसका वजन भी अब बढ़ने लगा है। 

गेस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. मनोज कुमार ने बताया कि कई मामलों में खाने की नली में सिकुड़न जन्मजात भी होती है, किन्तु कई बार ऐसे भी केस सामने आए हैं जबकि शुरू में बच्चा सही होता है और बाद में उनके आंतों में सिकुड़न आ जाती है, बच्चे बार बार खाया पीया उगलने लगते हैं। इस बच्ची की चूंकि पिछली हिस्ट्री सही बताई जा रही थी इसलिए इसे दूरबीन (एण्डोस्कोपिक) से जांच कर गहनता से देखा गया। बच्ची के कुपोषित रहने का कारण समझ आ गया। उसके खाने की नली ही सिकुड़ी होने के कारण वह परिवारजन द्वारा अच्छा खिलाने पिलाने के बावजूद भी कुपोषित ही रह रही थी। 

बच्ची खा-पीकर मुंह से उगल देती थी सबकुछ..

बच्ची के पिता गुलाबपुरा निवासी गोपाल तिवारी की बात मानें तो बच्ची जन्म से एक साल तक दूध वगैरहा अच्छे से पी लिया करती थी। गोपाल तिवारी ने बताया कि अपनी बच्ची को सेहतमंद देखने के लिए उसे खिलाने पिलाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। बावजूद हर अस्पताल में जहां भी उसे उपचार के लिए दिखाने ले जाते बच्ची को कुपोषित मानकर सरकारी योजना के तहत भर्ती कर लिया जाता। दस से बीस दिन तक ड्रिप चढ़ाकर उपचार देने के बाद बच्ची को छुट्टी दे दी जाती पर उसका ना तो वजन बढ़ता ना ही उसे खाया - पीया कोई अंग लगता। विगत दिनों में प्रदेश के एक बढ़े सरकारी अस्पताल में बच्ची का इलाज कराते हुए बताया गया था कि बच्ची ने ब्लाउज का हुक खा लिया है जिसे निकाल दिया गया है, अब बच्ची ठीक हो जाएगी, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। उसे कुछ भी खिलाने पिलाने पर वह उलट देती थी। 

बच्ची को पिलाते थे दो किलो दूध और खिलाते थे केले..

बकौल तिवारी वे बच्ची को दिन भर में दो से तीन किलो दूध और केले इस विचार से खिला-पिला दिया करते थे कि उसके कुछ तो पेट में जाएगा। फिर भी बच्ची की ना ग्रोथ होती थी ना ही उसके खाया-पीया कुछ अंग लगता था 

बच्ची को बताया था अल्पआयु... 

बच्ची के पिता तिवारी ने बताया कि कई लोगों ने तो बच्ची को जांचने के बाद कह दिया था कि यह बच्ची अल्पआयु ही है। उसकी उम्र दो तीन माह ही शेष है, इसकी घर लेजाकर जो सेवा करनी है कर लो। तिवारी ने बताया कि कोरोना काल में लाॅकडाउन के कारण उसकी रोजी नहीं रही, किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी अभी हाल ही में बिजयनगर स्थित चिकित्सालय में एक बार फिर बच्ची को लेजाकर दिखाया। जहां से उन्हें मित्तल हाॅस्पिटल, अजमेर में दिखाने की सलाह दी गई।

चिकित्सक की ले सलाह और कराएं जांच.. 

डाॅ मनोज ने कहा कि बच्चों में ऐसी समस्या हो तो उसे साधारण नहीं समझना चाहिए। इन समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए तुरंत चिकित्सक से सलाह कर जांच कराई जानी चाहिए। डाॅ मनोज ने कहा कि पूनम के माता पिता उसे दिन भर में जितना भी दूध या केले खिलाया करते थे, पेट में जाने वाला उसका मामूली सा अंश ही ईश्वर की कृपा से बच्ची को दो तीन साल तक सुरक्षित बनाए रख सका। 

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