अजमेर (Ajmer Muskan) I महालक्ष्मी सगिड़ा पर्व सिंधी समाज ने श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया। समाज की महिलाओं ने व्रत रखकर परिवार के सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की। घर के साथ ही सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की गई I
झुलेलाल मन्दिर के अध्यक्ष प्रकाश जेठरा ने बताया कि वैशाली नगर अजमेर में श्रद्धा के साथ पर्व मनाया I सिंधी समाज की महिलाओं ने महालक्ष्मी सगिड़ा पर्व मनाते हुए खुशहाली और समृद्धि की कामना की। सिंधी समाज की महिलाएं सिंधी माह बड्रे को उपवास रखकर कच्चे धागे में हल्दी लगाकर धागे के 16 तद मिलाकर उसमें 16 गांठ लगा कर सगिड़ा बनाती हैं। महालक्ष्मी सगिड़ा पर्व की बड़ी महिमा है।
महालक्ष्मी सगिड़ा पर्व से जुड़ी हुई कथा
एक राजा था उसे किसी ने पीला धागा "जिसे सिन्धी में "सगिड़ा" कहा जाता है, दिया । राजा ने वह धागा अपनी रानी को दिया और कहा कि इसे बांध लेना । रानी ने वह धागा फ़ेक दिया । उस धागे को उनकी नौकरानी बानी ने उठाया और माथे से लगाकर बांध लिया । रानी नहीं ईस तरह से उसका अनादर किया और बानी ने उसको आदर सहित बांध लिया । इससे बानी की किस्मत खुल गई और वह नौकरानी से महारानी बन गई, उसके पास सारे धन वैभव आ गए वह बहुत एशो आराम से रहने लगी ।
इसके बाद तो मानो रानी का भाग्य ही फूट गया वह घूमते घूमते बगीचे में गई तो सारे पेड़ पौधे सूख गए । पास में खड़ी गाय ने दूध देना बन्द कर दिया । नदी के किनारे गई तो नदी सूख गई । और तो और उस पर हार चुराने का आरोप भी लग गया । तब राजा ने उसे महल से निकाल दिया । अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए रानी दिन बिता रही थी । तभी एक साधू को उस पर दया आ गई और वह उसे अपनी कुटिया में ले गया । एक दिन राजा का सेवक वहाँ से गुजरा तो उसने रानी को वहाँ देखा उसने जाकर राजा को खबर दी तब राजा उसे स्वयं लेने आये परन्तु साधू नहीं कहा आप अभी जाओ, मैं स्वयं रानी को भेज दूंगा तब साधू ने रानी को दूध शक्कर दिया, जिसे सिन्धी भाषा में "अक्खा" कहते है और कहा जाते समय रास्ते में जो जो आये उसमें डालती जाना और कभी भी लक्ष्मीजी के सगिड़े (धागे) का अनादर मत करना । रानी ने ऐसा ही किया तब क्रमशः बाग हरा भरा हो गया, गाय दूध देने लगी, नदी पुरी पानी से भर गई और घुम हुआ हार भी मिल गया । इस तरह रानी का भाग्य पुन्ह जाग उठा । ऐसे ही लक्ष्मी जी अपने सभी भक्तो का भला करके उन्हें धन धान्य से परिपूर्ण कर देती है । इस प्रकार घर के सभी सदस्यों को सगीड़ा पहना कर अस्ठ्मी को उसे मीठी पूडी में लपेटकर ब्राह्मण के यहाँ पूजा करके फिर अक्खा डालकर दिया जाता है ।
आज महालक्ष्मी पर्व पर तरह-तरह के मीठे पकवान, सतपुड़ा, सिवईया,मीठे गच, मीठे चावल, खीर आदि बनाये गए और लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना कर पीला सगड़ा बांधकर भोग लगाकर सभी को खिलाया गया । यह त्योहार सन्देश देता है कि धन का घमंड कभी नहीं करना चाहिए, जो भी लक्ष्मी माता का अनादर करता है वह रूस्ट होकर चली जाती है, और जो नम्रता और आदर से लक्ष्मी का आव्हान करता है उनके यहा लक्ष्मी सदा निवास करती हैं ।
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