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शाहपुरा तो हमेशा से अगुवा रहा है, उसे बनाये रखे, हमे कोरोना से लड़ जीतना है

कोरोना संक्रमण के दौर में शाहपुरा में दुकानों का खुलना या न खुलना या सीमित समय के लिए छुट मिलना। प्रशासनिक व्यवस्था हो सकती है पर शाहपुरा के वाशिंदों को स्वयं ही जागृत होकर जिला ही नहीं देश में अपनी पहचान दिखाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाना चाहिए। कोरोना संक्रमण से न तो आज मुक्ति मिल रही है और न ही सरकार ऐसा दावा कर रही है। यह सब तो हम लोगों के आत्म अनुशासन पर ही निर्भर करेगा कि हम जितना अनुशासित रहेगें उतना की कोरोना संक्रमण से बच पायेगें। 


शाहपुरा के बाजार में सोमवार को जो दृश्य देखा गया वो शाहपुरा की रियासतकालीन शाही लवाजमे वाली शालीनता नहीं कही जा सकती है। शाहपुरा आजादी से पहले से ही अगुवा रहा हैै। यहां के सांप्रदायिक सोहार्द की मिसाले आज भी दी जाती है। आजादी आंदोलन के समय प्रजामंडल का आंदोलन, शाहपुरा का विलिनीकरण, आजादी से पहले का. दुष्यंत ओझा द्वारा तिरंगा फहराने का जज्बा, उन सब के परिणाम आये कि शाहपुरा आज अगुवा बन सका। 


मै यहां की राजनीतिक व्यवस्था पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं पर लोकतंत्र में जन के महत्व को देखते हुए यहां के वाशिंदों को अपने स्तर ही यह तय करना होगा कि राज्य व केंद्र सरकार की एडवाइजरी का पालन हम करें। इस मामले में हमारी मिसाल कायम होनी चाहिए। प्रशासन व पुलिस को मौका ही क्यों दिया जाए कि वो एडवाइजरी का पालन करने के दौरान हमसे होने वाली किसी भी चूक को लेकर हमारे पर टीका टिप्पणी करें। 


आने को कोराना घर में आ सकता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम दिन भर बाजार में तफरी करें। बिना कार्य बाइकों पर लोगों की तफरी को रोकने का दायित्व भी समाज के पंच पटेलों का ही है। उनको हम नहीं रोकेगें तो पुलिस का डंडा तो रोक कर दिखायेगा ही। खेर इस दौर में जरूरत केवल इतनी सी है कि एडवाइजरी का पालन अक्षरशः करने का पूरा प्रयास सभी को करना चाहिए।


भीलवाड़ा में सोमवार के दृश्य को देखते हुए लगता नहीं हे कि लोकडाउन में अब वहां कोई छुट मिल सकेगी। शाहपुरा के लोगों को भी चाहिए कि संयम रखे, धेर्य से ही कोरोना की अग्नि परीक्षा से हम गुजर सकेगें। बाजार में बढ़ती भीड़, सोशल डिस्टेसिंग की पालना नहीं करना और लोगों के मास्क न लगाना कभी भी घातक सिद्व हो सकता है, ऐसा न हो जाए कि आज भीलवाड़ा में दी ढील वापस ली गई और दो दिन में शाहपुरा में दी ढील को भी प्रशासन वापस ले ले।


हम सबको अपने आराध्य को साक्षी मानकर इस बात का संकल्प लेना होगा कि हम संयमित होकर एडवाइजरी का पालन करेगें, जहां मोबाइल करने से काम होता हो वहां कतई जाने की जरूरत नहीं है। चिकित्सालय के अलावा शायद ही ऐसा कोई स्थान होगा जहां मोबाइल से कार्य नहीं हो सकेगा।


इसलिए शाहपुरा के माननीय, पूज्यनीय, कर्मवीरों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि वो एडवाइजरी का पालन करते हुए अपने घरों में रहेे, स्वयं भी घर रहे और अपने पडौसी को भी बाहर न निकलने दे। तभी कोरोना से लड़ाई जीती जा सकती है। 


मूलचन्द पेसवानी
पत्रकार,
68, गांधीपुरी शाहपुरा(भीलवाड़ा)
मो. 9414677775


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