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सिंधी भाषा दिवस इतिहास एवं महत्व : मुस्कान हंसराजानी


प्रस्तावना :-
10 अप्रैल 1967 को भारतीय संविधान की आठवींं अनुसूची में भारत की प्राचीन सिंधी भाषा को शामिल किया गया था तभी से विश्व सिंधी दिवस प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को हजारों वर्षों पुरानी सिंध की संस्कृति को याद करते हुए उसे संरक्षित रखने के लिए मनाया जाता है । इसे पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोग तथा विश्व के भागों में बसे हुए सिंधी लोग मनाते हैं यह दिन सिंध की संस्कृति को मनाने और उसे प्रदर्शित करने का दिन है ।


इतिहास :- 
सिंध के मूल निवासियों को सिंधी कहते हैं 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सिंध के अधिकांश हिंदू और सिख यहां से भारत या अन्य देशों में जाकर बस गए पाकिस्तान में सिंधी भाषा नस्तालिक (यानीअरबी लिपि) में लिखी जाती है जबकि भारत में इसके लिए देवनागरी और नस्तालिन दोनों प्रयोग किए जाते हैं ।


सिंधु घाटी सभ्यता 1700 ईसा पूर्व के आसपास उन कारणों के कारण घट गई जो पूरी तरह से ज्ञात नहीं है हालांकि इसकी गिरावट संभवत: भूकंप या प्राकृतिक घटना से उत्पन्न हुई थी, जिसनें  घग्गर नदी को सुखा दिया था । माना जाता है कि भारत आयोग ने लगभग 1500 ईसा पूर्व सरस्वती नदी और गंगा नदी के बीच मौजूद वैदिक सभ्यता की स्थापना की थी । इस सभ्यता ने दक्षिण एशिया में बाद की संस्कृतियों को आकार देने में मदद की ।
 
सिंधी धार्मिक परंपरा में जल देवता (दरया शाह) की उपासना एवं चंद्रमा की उपासना भी मुख्य रूप से होती है । और जल देवता के अवतार भगवान झूलेलाल सिंधी समाज के मुख्य आराध्या देव हैं। 


उपसंहार :-
सिंधी दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता के मोहनजोदड़ो निवासी हैं। ऐसा मोहनजोदड़ो की खुदाई से भी स्थापित हुआ कि वहां के मूल निवासी शिव और मात्रका देवी की पूजा करते थे। अतः ये स्थापित होता है कि सिंधी ही मोहनजोदड़ो सभ्यता के वंशज हैं।


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