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सीपीआई के योद्धा वरिष्ठ पत्रकार का. दुष्यंत ओझा नहीं रहे

1946 में ही दरबार हाई स्कूल में तिरंगा फहरा कर चर्चा में आये थे दुष्यंत ओझा
दुष्यंत ओझा की देह को एसएमएस मेडिकल काॅलेज को किया सिर्पुद
शाहपुरा का एक और मजबूत किला ढह गया


शाहपुरा(मूलचन्द पेसवानी)। शाहपुरा मूल के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव रहे राष्ट्रीय परिषद सदस्य, वरिष्ठ पत्रकार का. दुष्यंत ओझा का मंगलवार को जयपुर के सी.के. बिड़ला हाँस्पीटल में निधन हो गया। वो 89 वर्ष के थे। आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली तथा उनकी पूर्व की स्वयं के देहदान की घोषणा के अनुरूप ससम्मान उनकी देह को जयपुर के एसएमएस मेडिकल काॅलेज को सिर्पुद किया गया है। इस दौरान उनकी पत्नी शारदादेवी, भाई जयंत ओझा, अनंत ओझा, भानजे अनिल व्यास मौजूद रहे। 60 वर्ष से भी अधिक सक्रिय राजनीतिक जीवन में उनका संबंध प्रांत और देश के लगभग सभी राजनीतिक दलों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों से रहा।


शाहपुरा की धरती के महान सपूत, क्रांतिकारी विचारक, कवि, लेखक एवं सकारात्मक राजनीति के पैरोकार और कुशल वक्ता दुष्यंत ओझा अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गये है। हालही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके निवास जयपुर पहुंच कर कुशलक्षेम पूछी थी। वे कुशल राजनितिज्ञ के साथ एक जिंदादिल इन्सान थे। विगत 1 सप्ताह से अस्वस्थ होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। देश के चोटी के राजनेताओं और पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं से निकट संबंध रहे। कुशल वक्ता, स्पष्ट वादी, बेहद ईमानदार छवि के कॉमरेड ओझा की अलग पहचान थी। सन 1946 में शाहपुरा के दरबार हाई स्कूल पर पहली बार तिरंगा फहराने का साहस रखने वाले कामरेड दुष्यंत ओझा उस समय अचानक चर्चा में आ गये थे। 1949 में शाहपुरा के दिलकुशाल बाग आयोजित विशाल सम्मेलन में भी मुख्य कार्यकर्ता के रूप् में दुष्यंत ओझा ही थे। इसमें मुख्य वक्ता के रूप् में शेख अब्दूला सहित कई राष्ट्रीय नेता आये थे।


का.दुष्यंत का जन्म दिसंबर 1931 में स्वतंत्रता सेनानी पं. रमेशचंद्र ओझा व रमादेवी ओझा के यहां शाहपुरा में हुआ। उनके एक बहन उमा व्यास व दो भाई जयंत ओझा व डा. अनंत ओझा है। उनकी प्रांरभिक शिक्षा शाहपुरा में हुई। उनके पिता के स्वंतत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका के कारण उनके परिवार को शाहपुरा रियासत से निर्वासित कर दिया तब उनका परिवार गोविंदगढ़ सीकर में रहा। दो वर्ष के बाद वो शाहपुरा वापस आये। 


दुष्यंत ओझा अजमेर के बाद भीलवाड़ा रहे। यहां उन्होंने पत्रकारिता में सक्रिय कार्य किया। उस समय के चर्चित अखबार हमलोग व लोकजीवन से वो सक्रियता से जुड़े। इसके बाद वो जयपुर गये जहां प्रसिद्व अखबार लोकवाणी में कार्य किया जहां राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कपुरचंद कुलिश भी उनके साथ कार्य करते थे। लोकवाणी का संचालन प्रसिद्व शास्त्री परिवार की देखरेख में होता था। इसी दौरान उन्होंने भागलपुर से एलएलबी किया तथा वकालात की। आपातकाल के बाद दुष्यंत ओझा ने अपना कार्यस्थल स्थायी रूप् से जयपुर को बनाया और वहां पर जनयुग अखबार के राज्य ब्यूरोचीफ तथा अंग्रेजी अखबार मेट्रोयट से जुडकर पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया। इस कारण प्रदेश के सभी राजनेताओं से उनके संपर्क होने का लाभ शाहपुरा व भीलवाड़ा जिले को वो दिलाते रहे। उस समय की पत्रकारिता में प्रखर पत्रकार, कुशल वक्ता होने के कारण प्रदेश के तमाम नेताओं हरिदेश जोशी, शिवचरण माथुर, हीरालाल देवपुरा, भैरोसिंह शेखावत, कैलाश मेघवाल, रामप्रसाद लढ़ा, रामपाल उपाध्याय, रतनलाल तांबी सहित कई नेताओं से उनका जीवंत संपर्क रहा। 


दुष्यंत ओझा के पिता पं. रमेशचंद्र ओझा ने 1937 में शाहपुरा में प्रजा मंडल की स्थापना की थी। 20 मार्च 2007 को शाहपुरा में प्रेस क्लब भवन के लोकार्पण समारोह में दुष्यंत ओझा ने मुख्य वक्ता के रूप् में पत्रकारों को कई टिप्स दिये थे। 


कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव होने के कारण कई देशों रूस, बुल्गारिया, चेकोस्कालिया, फिनलैंड, जर्मनी सहित कई देशो में दो दर्जन से अधिक बार डेलीगेशन लेकर गये। इस दौरान प्रसिद्व साहित्यकार लक्ष्मीकुमार चुंडावत से उनका काफी संपर्क रहा। इसी दौरान उनके पुत्र विवेक व पुत्री समता को भी उन्होंने विदेश में पढ़ाई के लिए भेजा जो अभी वहीं रह रहे है। उन्होंने शाहपुरा के नरेश व्यास पुत्र विष्णुदत्त कंपाउंडर व दिनेश टेलर पुत्र का. जगदीश टेलर को भी विदेश में ही अध्ययन के लिए भेजा। 


कुशल वक्ता होने के कारण उनको समय समय पर देश भर में कई व्याख्यानमालाओं में बुलाया जाने लगा तथा उन्होंने शाहपुरा में अपने पिता पं. रमेशचंद्र ओझा की स्मृति में व्याख्यानमाला प्रांरभ की जिसमें ख्यातनाम पत्रकार प्रभाष जोशी, अरूणा राय, अनिल लोढ़ा, यशवंत व्यास, वेदव्यास सहित कई विद्वानों को बुलवाया था।


अधिवक्ता, मार्क्सवादी चिंतक, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, साम्प्रदायिक सौहार्द के संवाहक कामरेड दुष्यंत ओझा अपने छात्र जीवन से ही संघर्ष के मैदान में कूद पडे थे। सन् 1953 से लेकर आज तक वो सीपीआई के सक्रिय सदस्य रहे। वे पार्टी के पुरावक्ती कार्यकर्ता के रूप लम्बे समय तक पार्टी का काम करते रहे। का.दुष्यंत किसानों, श्रमिकों, युवाओं, महिलाओं, आम अवाम के अधिकारों के आन्दोलनों का नेतृत्व करने में हमेशा आगे रहे। वे देश में गंगा जमुनी संस्कृति साम्प्रदायिक सौहार्द के पेरोकार थे। 


जयपुर में साम्प्रदायिक विरोधी कमेटी
राजस्थान के संस्थापक, कोमी एकता ट्रस्ट नयी दिल्ली के सदस्य, विजय सिंह पथिक स्मृति संस्थान के संस्थापक, स्वामी कुमारानंद स्मारक समिति, राजस्थान पीपुल्स पब्लिसिंग हाऊस जयपुर के डायरेक्टर, अखिल भारतीय शांति एकजुटता संगठन जयपुर के संस्थापक, जैसी अनेक संस्थाओं रहते हुए उन्होंने अपने दायित्वों का कुशलता पुर्वक निर्वहन किया। 


पारिवारिक पृष्ठभूमि आजादी आंदोलन से जुड़ी होने के कारण दुष्यंत ओझा भी छात्र जीवन से ही आजादी आंदोलन से जुड़ गये थे तथा पिता के संपर्क के लोगों के यहां आना जाना उनका प्रांरभ हो गया था। इस दौरान काॅलेज शिक्षा उनकी अजमेर में पूर्ण हुई और वहां हटूंडी आश्रम में प्रदेश के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी हरिभाउ उपाध्याय के वो काफी संपर्क में रहे और कई आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभायी। एक आंदोलन में उनके जोशीले तेवर के कारण लाठीचार्ज के बाद दुष्यंत ओझा को अजमेर जिले से निष्कासित कर दिया था। इसी दौरान अजमेर में स्वामी कुमारनंद व अन्य साम्यवादी नेताओं से भी उनका संपर्क हुआ तथा वो सक्रिय रूप् से कम्यूनिष्ट पार्टी से जुड़ गये। इस दौरान उनकी अगुवाई में कई आंदोलन हुए तथा उनके नेतृत्व में कई टेªड यूनियनों का गठन हुआ। इसी दौरान एक सभा में दुष्यंत ओझा भाषण कर रहे थे तो वहां शिवदयाल उपाध्याय उनसे प्रभावित हुए तथा अपनी पुत्री शारदादेवी के विवाह का प्रस्ताव उनके सामने रखा। उनका विवाह बघेरा कैकड़ी जिला अजमेर में हुआ। 


का. दुष्यंत के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय रमेश चंद्र ओझा से विरासत में मिले जीवन मूल्यों, सिद्धान्तों को आजीवन आगे बढ़ाया। गोवा मुक्ति आंदोलन में उनकी सक्रियता के कारण उनको गिरफ्तार होना पड़ा था। शाहपुरा के विकास व यहां के लोगों की मदद करना उनके स्वभाव में था तथा इसके लिए वो हमेशा अगुवा बने रहे।


आजादी के बाद से शाहपुरा के विकास एवं अन्य सभी महत्वपूर्ण आयोजनों में उनकी अग्रणी भूमिका रही। शाहपुरा से संदर्भित सभी राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों से वे सदैव सक्रिय रुप से जुड़े रहे। शाहपुरा में जब भी वे आते तो उनकी मित्र मंडली और उनके चाहने वालों का जमघट जुड़ जाता। क्रांतिकारी बारहठ परिवार के स्मारक से संबंधित कार्यों में उनकी भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी। राजनीति की बारीकियों को समझने में वे चाणक्य के रूप में जाने जाते थे। हर सत्ता और व्यवस्था में प्रांत के सभी दलों के राजनेता उनके मशवरे की कद्र करते थे। सामाजिक जड़ताओं, विकृतियों और पारंपरिक सोच के वे सदा विरुद्ध रहे। जैसा वे कहते वैसा ही करने का प्रयास भी करते रहे। देश के सुप्रसिद्ध कवियों,पत्रकारों विचारकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ उनका सतत संवाद उनकी पत्रकारिता और संभाषण में झलकता रहा। 


दुष्यंत का अर्थ ही होता है बुराई का नाश। स्व. ओझा सदैव सामाजिक और वैचारिक बुराइयों से लड़ते हुए अपने नाम की सार्थकता को प्रकटते रहे। इस मरणधर्मा संसार में एक दिन सभी को जाना है किंतु, जो व्यक्ति इस संसार में  आकर समाज के लिए मनसा, वाचा, कर्मणा सदैव सुकृत्य करते हैं वे सदैव स्मरणीय रहते हैं।


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