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कोविड-19 के खिलाफ जंग : रेल मंत्रालय की 30,000 पीपीई बनाने की योजना

रेलवे की मई 2020 में मिशन मोड में 1,00,000 कवरऑल का निर्माण करने की योजना


स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के लिए ऐसे रक्षात्‍मक कवरऑल तैयार कर अन्‍य हितधारकों के लिए उदाहरण प्रस्‍तुत करेंगे


अभय शर्मा, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी उत्तर पश्चिम रेलवे


अजमेर। भारतीय रेल की निर्माण इकाइयों, कार्यशालाओं और फील्‍ड यूनिट्स ने कोविड-19 से संक्रमित रोगियों का उपचार करते समय इस रोग के सीधे सम्‍पर्क में आने वाले चिकित्‍सा और स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के लिए व्‍यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) कवरऑल बनाना शुरु कर दिया है।


भारतीय रेल की ओर से अप्रैल 2020 में इस प्रकार के 30,000 कवरऑल बनाए जाएंगे और मई 2020 में उसकी 1,00,000 कवरऑल बनाने की योजना है। ये प्रोटोटाइप कवरऑल पहले ही ग्‍वालियर स्थित डीआरडीओ की प्राधिकृत प्रयोगशाला में निर्धारित परीक्षण उच्‍चतम ग्रेड्स में पास कर चुके हैं। 


भारतीय रेल के डॉक्‍टर्स, चिकित्‍सा व्‍यवसायी, अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य कर्मी और देखरेख करने वाले कोविड-19 महामारी के खिलाफ अथक रूप से लड़ाई जारी रखे हुए हैं। ये सभी कर्मी संक्रमित मरीजों का इलाज करते समय कोविड-19 रोग के सीधे संपर्क में आते हैं। नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ अग्रिम कतार में लड़ने वालों को विशेष प्रकार के अभेद्य कवरऑल उपलब्‍ध कराए जाने की आवश्‍यकता है, जो इस वायरस के साथ ही साथ अन्‍य रोगाणुओं से बचाव का भी काम करें। इस प्रकार के कवरऑल केवल एक ही बार उपयोग में लाए जा सकते हैं, इसलिए बड़ी संख्‍या में उनकी आवश्‍यकता है। जैसे-जैसे कोविड-19 रोग के मरीजों की संख्‍या बढ़ रही है, भले ही नियंत्रित रूप से ही क्‍यों न बढ़ रही हो, इस प्रकार के पीपीई की आवश्‍यकता भी निरंतर बढ़ रही है।


पीपीई की उपलब्‍धता और आवश्‍यकता के अंतर को पूरा करने के लिए उत्‍तर रेलवे की जगाधरी कार्यशाला ने इन प्रोटोटाइप कवरऑल को डिजाइन और निर्माण करने की पहल की थी। प्रोटोटाइप कवरऑल का परीक्षणडीआरडीओ की ग्‍वालियर स्थित रक्षा अनुसंधान विकास प्रतिष्‍ठान प्रयोगशाला में किया गया था, जो इस प्रकार के परीक्षण करने के लिए अधिकृत है। कवरऑल के नमूनों ने डीआरडीई द्वारा किए गए सभी परीक्षण उच्‍चतम ग्रेड्स में पास कर लिए।


इस पहल को आगे बढ़ाते हुए रेल मंत्रालय अप्रैल, 2020 में 30,000 से ज्‍यादा पीपीई ओवरऑल तैयार करने के लिए पर्याप्‍त मात्रा में कच्‍चा माल खरीदने और अपनी कार्यशालाओं और अन्‍य यूनिट्स में वितरित करने में समर्थ हो सका है। निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुका है और इन कवरऑल्‍स के अंतिम उपयोगकर्ता, भारतीय रेल के अपने चिकित्‍सकइन कवरऑल्‍स को पहनकर देखने के कार्य में संलग्‍न हैं, क्‍योंकि इनके निर्माण में तेजी लाई जा रही है। बढ़ती आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए भारतीय रेल ने मई में 1,00,000 अतिरिक्‍त पीपीई कवरऑल तैयार करने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है और इनके लिए कच्‍चे माल का प्रबंध करने का कार्य भी शुरु हो चुका है।


उपयुक्‍त पीपीई कवरऑल का निर्माण करने के लिए आवश्‍यक कच्‍चे माल साथ ही साथ इनका निर्माण करने वाली मशीनरी की वैश्विक स्‍तर पर भारी कमी होने के बावजूद यह कार्य किया है। इस प्रयास के पीछे समय की कसौटी पर खरी उतरने वाली भारतीय रेल की कार्यशालाएं और दुनिया के सबसे सुरक्षित इंजनों का विनिर्माण करने वाली प्रोडक्‍शन यूनिट्स की क्षमता है। इंजन के निर्माण और उपयोग के लिए सामान्‍यत: जिन क्षमताओं, विशेषज्ञता, प्रोटोकॉल्‍स और प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, फील्‍ड यूनिट्स और कार्यशालाओं को त्‍वरित रूप से उच्‍च गुणवत्‍ता के पीपीई कवरऑल उपलब्‍ध कराने में सक्षम बनाने के लिए उन्‍हीं का उपयोग किया गया है।


इस बात पर गौर करना उल्‍लेखनीय होगा कि वही समर्पण भारतीय रेल में पहले भी देखा गया है, जब उसने बहुत ही कम अवधि में 5000 से ज्‍यादा यात्री डिब्‍बों को मोबाइल क्‍वारंटीन /आइसोलशन सुविधाओं में परिवर्तित करने का जिम्‍मा उठाया।


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