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कोरोना जैसे रोग से बचने के लिए आयुर्वेद के शास्त्र ही प्रमाणित उपाय

कोरोना जैसे विषाणु जनित रोग आयुर्वेद में जनपदोध्वंश
शाहपुरा (मूलचन्द पेसवानी)। शाहपुरा के सेटेलाइट चिकित्सालय में पदस्थापित एनपीसीडीएस, सीसीआरएएस अनुसंधान सहयोगी वैद्य दीपक सिंह राजपुरोहित ने कहा है कि कोरोना जैसे रोग से बचने के लिए आयुर्वेद के शास्त्र ही प्रमाणित उपाय है। कोरोना जैसे विषाणु जनित रोग आयुर्वेद में जनपदोध्वंश कहे जाते है। 


वैद्य राजपुरोहित ने बताया कि ये (च. वि. 3) के अंतर्गत आते हैं, इसमें बताया गया है कि जनपदोध्वंश वायु, जल, देश और काल के दूषित होने से होता है, यह चारों अधर्म जैसे प्रकृति के विपरीत कार्य करने से दूषित होते हैं। इसके साथ-साथ अगर आयुर्वेद के त्रिदोष के परिपेक्ष्य में देखें तो इस प्रकार की व्याधियाँ प्रायः कफ दोष के दूषित होने के कारण होती है तथा वसंत ऋतु में प्राकृतिक रूप से भी कफ दोष का प्रकोप होता है, जो व्यक्ति अपने आहार-विहार में लापरवाह होते है और शिशिर और वसंत ऋतु की ऋतुसंधि ( प्रायः फरवरी माह के अन्तिम सप्ताह व मार्च माह के प्रारंभिक सप्ताह) में निषेद्ध आहार-विहार करते है व वसंत ऋतु में गुरु, अम्ल, स्निग्ध, मधुर आहार और दिवास्वप्न करते हैं तो उन व्यक्तियों में कफ दोष प्रकोप होता हैं और इस प्रकुपित कफ दोष के कारण या अन्य दोषो के प्रकुपित कफ से संसर्ग होने से ऐसे लापरवाह व्यक्ति कोरोना जैसे विषाणु जनित रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। इस प्रकार के ज्वर आमाशय से उत्पन्न होते है, इनका उपचार प्रायः पाचन, वमन व अपतर्पण कर्म से करते है, लेकिन यहा हम इस प्रकार की व्याधियों से बचाव के लिए मुख्यतः आयुर्वेद के प्रथम प्रयोजन स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम् की बात करेंगे।


वैद्य राजपुरोहित ने बताया कि आयुर्वेद के दूसरे प्रयोजन आतुरस्य विकार प्रशमनंच (रोगी के रोग का विनाश) की बात आपको चिकित्सक से मिलकर करनी है। जैसे गुरु, अम्ल, स्निग्ध और मधुर आहार और दिवास्वप्न जैसे कफ वर्धन विहार आदि निदान  का त्याग करें, पाचन के लिए उबलते- उबलते आधा शेष रह जाए ऐसा जल गुनगुना रहने पर पान करे, यह सूखोष्ण जल कफ का शोषण, वातपित्त का अनुलोमन और दीपन करता है और  भोजन में हल्के आहार मूंग दाल,  दलिया, खिचड़ी, हल्दी, जीरा, काली मिर्च, हरी मिर्च, लहसुन, तोरई आदि का उपयोग करें जिससे अपतर्पण होगा। 


वैद्य राजपुरोहित ने बताया कि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय जैसे प्रातः काल सूर्य नमस्कार, ध्यान, कपालभाती शोधन क्रिया, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, दीर्घ श्वसन प्राणायाम क्षमतानुसार करें और कुछ उष्ण वीर्य, कटु विपाक वाले औषध द्रव्य जैसे गिलोय, सोंठ, तुलसी पत्र, मुलेठी, अश्वगंधा, चिरायता, कालमेघ, ब्राह्मी मंडूकपर्णि कंटकारी, आंवला, भूमि आमलकी, सटी आदि इनमें से जो द्रव्य उपलब्ध हो सके उनका जौकुट चूर्ण कर 16 गुना जल लेकर बिना ढक्कन लगाएं 1/8 शेष रहने तक उबालें और गुनगुना रहने पर, भोजन करने के 1 से 2 घंटे बाद, 2 से 10 साल के बच्चों को 10 मिली क्वाथ और 11 साल से अधिक आयु का व्यक्ति  20 मिली क्वाथ पान करें और पित्त प्रकृति के व्यक्ति इस क्वाथ में पित्तशामक द्रव्य मिलाएं, 2 साल से कम आयु के बच्चों को प्रमाणित आयुर्वेद चिकित्सक से स्वर्णप्राशन करवायें। और शीत ऋतु में चवनप्राश 5 -10 ग्राम के साथ हल्दी मिलाया हुआ 150-250 मिलिग्राम दूध पान करें। और प्रतिमर्श नस्य जैसे नाक के नथुनों में कच्ची घानी का 2-2 बूंद शुद्ध सरसों का तैल, अणु तेल या गोघृत को लगायें है और मुँह में  तिल का तैल मिला हुआ औषधिएँ कल्ख भर के कवल करें । और औषधि द्रव्य जैसे गुग्गुल, नीम पत्र, हरड़, सफेद सरसों, जौ, आक के पत्र के चूर्ण व लवण को घृत के साथ मिश्रण कर दिन में दो बार धूपन करे ।


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