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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह पर मीडिया कार्यशाला आयोजित

घूंघट मुक्त  राजस्थान के लिए हुई चर्चा


अजमेर। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के अन्तर्गत महिला अधिकारिता विभाग, जिला प्रशासन तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एवं घूंघट मुक्त राजस्थान विषय पर मीडियाकर्मियों एवं गैर सरकारी संगठनों की कार्यशाला गुरूवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव श्री शक्ति सिंह शेखावत की अध्यक्षता में इंडोर स्टेडियम सभागार में आयोजित हुई।
     
शेखावत ने कहा कि संविधान ने भारत के नागरिकों को मूल अधिकार एवं  कर्तव्य प्रदान किए है। इनके संदर्भ में महिलाओं के प्रति गरिमा एवं सम्मान का भाव रखा जाना चाहिए। कई कुप्रथाओं के कारण हम आधी आबादी की प्रतिभा का शत प्रतिशत उपयोग नहीं कर पाते है। वर्तमान समय में घूंघट प्रथा भी एक कमजोरी है। इस प्रकार की कार्यशालाओं से नवाचार होता है। कुरितियां खत्म करने की दिशा  में कदम आगे बढ़ाने में मदद मिलती है।
    
 उन्होंने कहा कि महिलाएं अकादमिक, व्यावसायिक एवं तकनीकी क्षेत्रों में आगे बढ़ी है। नए न्यायाधीशों में तीन चौथाई से अधिक महिलाएं चयनित होकर नया संदेश दे रही है। घूंघट प्रथा को देश एवं समाज से खत्म करना ही होगा। इस प्रथा से महिलाओं की पहचान सिमट जाती है। इसी प्रकार शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व होने पर भी बाल विवाह करने से दोनो पक्ष ही जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं होते है।
     
उन्होंने कहा कि कुप्रथाओं के कारण प्रतिभाएं कुंठित हो जाती है। देश के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घूंघट मुक्त राजस्थान के कार्यक्रम को मिशन के रूप में लेकर कार्य करने की आवश्यकता है। दुष्कर्म और दुराचार महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाते है। पोक्सो अदालतों में प्रकरणों की संख्या बढ़ना सोचनीय विषय है। अपराध से पीड़ित व्यक्ति को सरकार द्वारा प्रतिकर के रूप में सहयोग प्रदान किया जाता है। इस संबंध में समाज को जागरूक किए जाने की आवश्यकता है।
     
कार्यशाला की मुख्य वक्ता नगरीय निकाय विभाग की उप निदेशक डॉ. अनुपमा टेलर ने कहा कि घूंघट हट जाने पर महिलाएं आकाश छूने में सक्षम है। समाज में बदलाव धीरे - धीरे आता है। सिंधु घाटी सभ्यता में घूंघट का अस्तित्व नही था। वैदिक काल में महिलाएं शास्त्रार्थ में निपूर्ण थी। स्वयंवर का चलन सामान्य था। रामायण और महाभारत काल में भी पर्दा प्रथा नहीं थी। भारतीय समाज में घूंघट का चलन मध्य युग से आरम्भ हुआ। उस समय की मजबूरी पर्दा प्रथा रही होगी। वर्तमान में इसकी आवश्यकता नही है।
     
उन्होंने कहा कि सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत है। प्रशासन में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए प्रत्येक स्तर पर कार्य किया जा रहा  है। घूंघट महिलाओं के विकास में बाधक है। घूंघट सम्मान प्रदर्शित करने का तरीका नहीं है। सम्मान दर्शाने के लिए सही शब्दो का इस्तेमाल ही काफी होता है। आदिम समुदायों में पूर्ण लैंगिक समानता है। भारत में कई मातृसत्तात्मक समुदाय है। उनमें आज भी स्वयंवर होता है। घूंघट प्रथा की समाप्ति के परिणाम सुखद होंगे।
     
महिला अधिकारिता विभाग के उप निदेशक जितेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि घूंघट जैसी कुप्रथाओं के बारे में समाज को शिक्षित करने में मीडिया एवं गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। निरोगी राजस्थान योजना के साथ घूंघट प्रथा समाप्त करने का अभियान चलाया जाएगा। इससे महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का रास्ता साफ होगा। घूंघट से महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी, संकोच, फैसले लेने की क्षमता में कमी जैसे नकारात्मक प्रभाव सामने आते है।
     
इस अवसर पर सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के उप निदेशक महेश चन्द्र शर्मा, समस्त मीडियाकर्मी एवं गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।


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